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________________ एकदम चमक कर बोला- "अनुभव की क्या बात है? मैं खुद पिछले 20 साल से इसका मरीज हूँ।" ____ कैसी विडंबना है? जो खुद 20 साल में अपना रोग नहीं मिटा पाया वह दूसरों की चिकित्सा कर रहा है, उसका निदान करने का दावा कर रहा है। स्थितिकरण अंग कहता है कि पहले स्वयं को निरोग करो, तब अन्य की चिकित्सा करो। अपने जीवन में आरोग्य आये, यह प्रथम शर्त है, फिर अन्य को सहारा देना। स्थितिकरण अंग संदेश देता है- स्वयं को स्थिर करो। कोई मार्ग से स्खलित हो रहा हो, उसे भी स्थिर करने का यत्न करो। पथ से स्खलन के कई कारण हो सकते हैं, अतः गिरते को गिरने दो, ऐसा मत सोचो। आज वह गिर रहा है तो कोई परिस्थिति आ गई होगी। उसे सहारा दो, कदाचित् वह सँभल जाये। उसे आश्रय देना कर्त्तव्य मानना चाहिये। उसकी परिस्थिति पर विचार करना चाहिये। आज सहारा देने वालों की कमी हो रही है। इसलिये आचार्य कहते हैं- किसी को आश्रय दो, सहारा दो तो उपगूहन की पृष्ठभूमि में हो। प्रचार-प्रसार से स्थितिकरण नहीं होता। यदि कोई पथच्युत हो रहा है- तो पता करना चाहिये कि इसका क्या कारण है? कोई पारिवारिक समस्या है, कोई आर्थिक कठिनाई है, कोई सामाजिक समस्या या राजनैतिक दबाव के कारण तो वह धर्म से दूर नहीं हो रहा है। परिस्थिति को जानकर उसका समाधान करें, उसे सहयोग दें। उसकी समस्या का निदान करके उसे धर्मपथ पर स्थिर करना चाहिए। यदि कोई शारीरिक कष्ट हो तो उसकी सेवा-सुश्रुषा कर उसकी धार्मिक आस्था को सुदृढ़ करें, उसी का नाम स्थितिकरण है। सभी को परस्पर एक दूसरे की सहायता करना चाहिये। एक घटना जबलपुर के एक व्यापारी ने सुनाई थी। एक बार कई व्यापारी जबलपुर से 10 562
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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