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________________ जिनका सम्यग्दर्शन आठ दोषों से विरहित है, चक्रवर्ती की लक्ष्मी उसका आश्रय लेने को उत्कंठित रहती है, स्वर्ग की लक्ष्मी उसके दर्शन के लिये उत्सुक होती है तथा मुक्तिलक्ष्मी भी उसके समीप रहती है। ___ एक जगह सम्यग्दर्शन की महिमा बताते हुए कहा गया है- जितना एक पत्थर का गौरव है, उतना ही गौरव सम्यग्दर्शन रहित शम-ज्ञान-चारित्र -तप आदि का समझना चाहिए और जब से ज्ञान-चारित्र-तप सम्यग्दर्शन सहित हो जाते हैं तब एक बहुमूल्य रत्न की तरह आदर के पात्र हो जाते हैं, इस कारण हर प्रयत्न द्वारा स्वर्ग-मोक्ष के कारण सम्यग्दर्शन को प्राप्त करना चाहिए। पंडित श्री दौलतराम जी ने लिखा है मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान-चरित्रा। सम्यक्ता न लहै सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा ।। 'दौल' समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै। यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै।। यह सम्यग्दर्शन मोक्षमहल की पहली सीढ़ी है। इस सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक्पने को प्राप्त नहीं होते। इसलिए, हे भव्यजीवो! जैसे भी बने इस सम्यग्दर्शन को अवश्य धारण करो। पं. दौलतराम जी कहते हैं कि यदि तुम समझदार हो तो सुनो, समझो और चेतो, व्यर्थ में समय खराब मत करो, क्योंकि यदि इस भव में सम्यग्दर्शन नहीं हुआ तो दुबारा यह मनुष्य भव मिलना कठिन है। यहाँ सम्यग्दर्शन के सोपानों का वर्णन किया जा रहा है। 0 540
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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