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________________ प्रतिज्ञा की कि मैं जिनेन्द्रदेव, जिनवाणी और जिनगुरु के अतिरिक्त अन्य किसी को नमस्कार नहीं करूँगा । साथ ही उन्होंने श्रावक के व्रत लिये । बाद में वज्रकर्ण ने सोचा कि मैं तो उज्जयिनी के राजा सिंहोदर का सेवक हूँ। यदि मैं उन्हें नमस्कार नहीं करूँगा, तो वे मुझे दण्ड देंगे। नमस्कार करके मैं अपनी प्रतिज्ञा भी भंग नहीं करना चाहता । अब मुझे क्या करना चाहिये? इस प्रकार बहुत सोच-विचार के पश्चात् उन्होंने एक अंगूठी में मुनिसुव्रतनाथ भगवान् की प्रतिमा बनवाकर उसे दाहिने हाथ में पहन ली तथा सिंहोदर के पास जाते समय वे उस अँगूठी को आगे रखते थे। एक दिन यह भेद राजा सिंहोदर को किसी ने बता दिया। तब उन्होंने क्रोधित होकर राजा वज्रकर्ण को मारने का विचार बनाया । अतः उन्होंने राजा वज्रकर्ण को मिलने के बहाने बुलावाया । सिंहोदर की कुटिलता से अनभिज्ञ वज्रकर्ण जब राजा से मिलने के लिये जा रहे थे कि रास्ते में ही विद्युदंग नामक एक व्यक्ति ने राजा वज्रकर्ण को बताया कि राजा ने तुमको मारने के लिये बुलवाया है, क्योंकि उनको किसी ने तुम्हारी अँगूठी वाली बात बता दी है। जब वज्रकर्ण को उस पर विश्वास नहीं हुआ, तो उसने पूरी कहानी बताई । तब वज्रकर्ण ने उस पर विश्वास कर लिया । इतने में सिंहोदर सेना सहित राजा वज्रकर्ण की ओर आ गया । यह देखकर वज्रकर्ण और वह व्यक्ति दोनों वज्रकर्ण के महल में जाकर छिप गये। तब सिंहोदर ने कहा 'वज्रकर्ण! मैंने तुझे यह राज्य देकर राजा बनाया और अब तू मूझे ही नमस्कार नहीं करता? तब वज्रकर्ण कहता है कि सब कुछ ले जाओ, लेकिन मैं सच्चे देव, शास्त्र व गुरु के अलावा और किसी को नमस्कार नहीं करूँगा । तब सिंहोदर ने क्रोधित होकर वज्रकर्ण पर आक्रमण कर दिया । किन्तु उसकी सेना वज्रकर्ण के अभेद्य किले में प्रवेश न कर सकी। इससे बौखलाये हुये सिंहोदर ने बाहर का सब गाँव जला डाला । 515 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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