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________________ मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर छत पर रख दें तो रात में ठण्डक से पानी जमकर बर्फ बन जायेगा, तब उस जमाई हुई बर्फ को दूसरे दिन खायेंगे। ऐसा निश्चय करके वे एक मिट्टी का छोटा-सा बर्तन ढूँढ लाये । फिर इधर-उधर पानी देखने लगे। जल्दी में उन्हें पानी नहीं मिला। तब दोनों ने पेशाब करके उस बर्तन को भर दिया और उसको छत के ऊपर रख आये। रात की ठंडक में पेशाब जमकर सफेद बर्फ बन गयी । दूसरे दिन दोनों बच्चे उस बर्फ को छत पर से उठा लाये और उसे देखकर बड़े प्रसन्न हुये । वे उस बर्फ को खाने का विचार करने लगे । तब उनमें से एक बोला कि भाई ! यह पेशाब की बर्फ है, पहले इसे धोकर शुद्ध कर लेना चाहिये। जब वे बर्फ को धोने लगे, तो इतने में उनमें से एक बच्चे के पिता जी आ गये। उन्होंने पूछा कि तुम लोग क्या कर रहे हो? तब उन बच्चों ने बर्फ दिखाकर कहा कि हम लोगों ने अपनी पेशाब की यह बर्फ जमाई थी, उसे खाने के लिये पानी से धोकर शुद्ध कर रहे हैं। पिताजी बोले, 'बेटा! यह बाथरूम की बर्फ धोने से शुद्ध नहीं हो सकती, इसकी तो जड़ ही अशुद्ध है, उसकी शुद्धि नहीं हो सकती। ऐसी ही बात शरीर के विषय में है । वज्रनाभि चक्रवर्ती की 'वैराग्य भावना' में पंडित भूधरदासजी ने लिखा है देह अपावन, अथिर घिनावन, या में सार न कोई । सागर के जल सों शुचि कीजे, तौहू शुद्ध न होई ।। यह शरीर अपवित्र, अस्थिर, घिनावना है। इसमें श्रेष्ठ वस्तु कोई भी नहीं है। यदि इस शरीर को समुद्र के अपार जल से भी धोकर शुद्ध किया जावे, तो भी यह शरीर पवित्र नहीं हो सकता। पंडित दौलतराम जी ने लिखा है- "जे-जे पावन वस्तु जगत में, ते इन सर्वबिगारी ।” यानीसंसार में कपूर, इत्र आदि जो-जो पवित्र पदार्थ हैं, इस शरीर ने स्पर्श करते ही उन सबको विकृत करके बिगाड़ डाला है, उनको अपवित्र कर 508 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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