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________________ बारहवें स्वर्ग में महर्द्धिक देव हुई । अज्ञान अवस्था में लिये हुये शीलव्रत का भी जिसने दृढ़तापूर्वक पालन किया और स्वप्न में भी संसारसुख की तथा अन्य ऋद्धि की कामना न करते हुये आत्मध्यान किया, उस अनन्तमती को देवलोक की प्राप्ति हुई । आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने 'समयसार' ग्रंथ में लिखा हैजो दुण करेदि कखं कम्मफलेसु तह सव्वधम्मेसु । सो णिक्कंखो चेदा सम्मादिट्ठी मुणेयव्वो । | 230 || अर्थात् सब धर्म एवं कर्मफल की ना करें आकांक्षा । वे आत्मा निःकांक्ष सम्यग्दृष्टि हैं- यह जानना । । सम्यग्दृष्टि कभी भी भोगों की आकांक्षा नहीं करता। भोगों की आकांक्षा रखने वाले असंयमी जनों का जीवन नष्ट हो जाता है । असंयमी का जीवन एक कटी पतंग के समान होता है आसमान में एक पतंग उड़ रही थी । यह देख ऊपर आसमान में हवा पतंग का स्वागत करती है। कहती है- 'अरी पतंग ! अब तुम हमसे मिलकर रहो, जो तुम्हारी डोर पकड़े है, उसका साथ छोड़ दो। फिर तुम पूर्ण स्वतंत्र होकर हमारे साथ रहना ।' पतंग कहती है- 'हमारा उससे छूटना कैसे बन पायेगा?' हवा कहती है- 'हम तुम्हारा साथ देंगे, तुम्हारी मदद करेंगे। बोलो, तुम्हें हमारे साथ रहना स्वीकार है?' हाँ-हाँ स्वीकार है पतंग ने उत्तर दिया। अब हवा बहुत तेज चलने लगती है, जिससे डोर टूट जाती है। अब पतंग स्वच्छन्द हो जाती है, किसी प्रकार का कोई बन्धन नहीं रह जाता। जब तक पतंग डोर के आश्रय में थी, तब तक तो वह सुरक्षित थी, किन्तु स्वछन्द हो जाने से असुरक्षित हो जाती है। अब हवा की तेज चाल से पतंग फटने लगती है, तब पतंग कहती है कि 'हवा बहिन! जरा धीरे-धीरे चलो, थोड़ी देर के लिये बन्द हो जाओ, हमें इस तरह न सताओ। हवा कुछ ध्यान नहीं देती। थोड़ी ही देर में ऊपर से 490
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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