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________________ और नीचे जमीन पर तीक्ष्ण नोंकदार भाले लगाये। आकाशगामिनी विद्या की साधना करने के लिए सीके में बैठ कर, पंच णमोकार मंत्र बोलते हुए सींके की रस्सी काटनी थी, परन्तु नीचे लगे भालों को देखकर उसे डर लगता था, और मन्त्र में शंका होती थी कि कदाचित् मन्त्र सिद्ध नहीं हुआ और मैं नीचे गिर पड़ा, तो मेरा शरीर छिद जायेगा। ऐसी शंका से वह नीचे उतर जाता। थोड़ी देर पश्चात् उसे ऐसा विचार आता कि सेठ जी ने कहा, वह सच्चा होगा तो? अतः फिर सींके में जा बैठता। इस प्रकार वह बारम्बार सीके से चढ़ता-उतरता, लेकिन वह निःशंक होकर उस रस्सी को काट नहीं सका। __ इतने में अंजन चोर भागते-भागते वहाँ पहुँचा। माली को ऐसी विचित्र क्रिया करते हुये देखकर उसने पूछा-“अरे भाई! ऐसी अन्धेरी रात में तुम यह क्या कर रहे हो?" सोमदत्त माली ने उसे सब बात बताई। उसे सुनते ही अंजन चोर को णमोकार मंत्र पर परम विश्वास बैठ गया। उसने माली से कहा-"लाओ, मैं इस मंत्र को सिद्ध करता हूँ।" ऐसा कहकर उसने श्रद्धापूर्वक मन्त्र बोलकर निःशंकपन से सींके की रस्सी काट दी। अहो आश्चर्य! नीचे गिरने के पहले ही देव-देवियों ने उसे ऊपर ही झेल लिया और कहा-"मन्त्र के ऊपर तुम्हारी निःशंक श्रद्धा से तुम्हें आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हो गई है, उसकी वजह से आकाशमार्ग से तुम्हें जहाँ भी जाना हो, जा सकते हो।" तब से अंजन चोर ने चोरी करना छोड़ दिया और जैनधर्म का भक्त बन गया। वह बोला- "जिनदत्त सेठ के प्रताप से मुझे यह विद्या प्राप्त हुई है, अतः जहाँ जिनदत्त सेठ हैं, मैं भी वहीं जाकर जिनबिम्बों के दर्शन करना चाहता हूँ।" जिसकी जैसी गति होनी होती है, उसकी मती भी वैसी ही हो जाती है। अंजन चोर को आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हुई, तो उसे चोरी का धन्धा करने के लिये उस विद्या का उपयोग करने दुर्बुद्धि नहीं हुई, परन्तु जिनबिम्बों के दर्शन इत्यादि धर्मकार्य में उसका उपयोग करने की सद्बुद्धि सूझी। यह बात उसके 0 472_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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