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________________ किसकी सुरक्षा? आत्मा तो सदा सुरक्षित है, फिर भय कैसा? वेदना का भय भी बड़ा भय होता है। हे भगवान्! मुझे कोई रोग न हो जाये, मैं बीमार न पड़ जाऊँ। प्रायः इसी चिन्ता में लोग बीमार पड़ जाते हैं। “कहीं कुछ गड़बड़ी न हो जाये” इस प्रकार का आकस्मिक भय भी सम्यग्दृष्टि को नहीं सताता। अज्ञानी को अशरणपने का भय बना रहता है। मेरे को कहीं कोई शरण नहीं है, यों शंकित होता हुआ दुःखी रहता है। वह चाहता है कि सब मेरे अनुकूल हो। पर बताओ सब लोग किसी एक के अनुकूल हुए हैं क्या आज तक? एक भी उदाहरण बताओ। भगवान् को 'यह इन्द्रजालिया है, यह अपनी शान बघार रहा है। ऐसा कहने वाले लोग भगवान् के समय में भी न थे क्या? फिर कितने आश्चर्य की बात है कि यह अज्ञानी मोही प्राणी यह चाहता है वैसा वस्तु का स्वरूप नहीं है, इस कारण यह दुःखी होता है, मरण समय पर मणि, तन्त्र-मन्त्र, बड़े राजपाट, परिजन, सबकुछ धरे रहे जाते हैं। कोई बचाने में समर्थ नहीं होता। मरण की भी बात छोड दो कोई पेटदर्द या सिरदर्द या बखार किसी के हो तो उसको भी कोई बाँट नहीं सकता। साधारण भी चिन्ता हो, उसे भी बाँट लेने वाला कोई नहीं है। यह जगत् अशरण है। यहाँ मेरा कोई शरण नहीं है। एक सभा भरी हुई थी। राजा भोज के समय की बात है। राजा ने एक पंडित के बाप से कहा, जो पास में बैठा हुआ था, कि पंडित जी! कोई कविता सुनाओ। मेरी इस समस्या की पूर्ति कर दो" क्व यामः किं कुर्मः हरिणशिशु रेवं विलपति'। तो यह तो जरूरी नहीं है कि पंडित का बाप भी पंडित हो, वकील का बाप भी वकील हो। तो उस पंडित का बाप पढ़ा – लिखा न था, वह देहाती भाषा में, टूटी-फूटी भाषा में, बोलता है 'पुरा रे बापा।' 'बापा' कहीं-कहीं बच्चों को भी बोलते हैं। तो पुरा रे बापा मायने 'ऐ बच्चे! तू इसकी पूर्ति कर दे।' वह तो देहाती भाषा में बोला था 'पुरा रे बापा।' तो कवि ने उन्हीं शब्दों को (पुरा रे बापा) मिलाकर कविता बना दी, ताकि लोगों को यह विदित न हो कि बाप मूर्ख है। क्या कविता बनायी? 0 460_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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