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________________ I तत्त्वों में शंका करना मिथ्यात्व है, पर जिज्ञासा व्यक्त करना सम्यक्त्व को पुष्ट करने का साधन है । जिज्ञासा व्यक्त करना पृच्छना नाम का स्वाध्याय है, जो ज्ञान के विकास एवं तत्त्वनिर्णय में कारण है । भगवान् महावीर स्वामी से राजा श्रेणिक ने 60 हजार (साठ हजार ) शंकायें नहीं की थीं अपितु जिज्ञासाएँ व्यक्त की थीं। देव-शास्त्र - गुरु के अनुसार जो अपने जीवन को अपनी श्रद्धा को यथाशक्ति उस साँचे में ढालने का प्रयास करता है, वही निःशंकित अंग का धारी होता है। निःशंकित अंग का धारी प्रत्यक्ष को प्रमाण, अप्रत्यक्ष को अप्रमाण न मानता हुआ जिनागम के अनुसार ही सभी वस्तुओं का अस्तित्त्व स्वीकार करता है और निर्भय होकर मोक्षमार्ग में आगे बढ़ता चला जाता है, पीछे मुड़कर कभी नहीं देखता है । चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, साधक को मोक्षमार्ग पर निःशंक होकर अविरल आगे बढ़ते जाना चाहिए। एक व्यक्ति था, जिसने 21वें वर्ष में वार्ड मेम्बर का चुनाव लड़ा और हार गया। 22 वें वर्ष में शादी की, पर असफल रहा। 24 वें वर्ष में व्यवसाय करना चाहा, पर नाकामयाब रहा। 27 वें वर्ष में पत्नी ने तलाक दे दिया। 32वें वर्ष में सांसद पद के चुनाव के लिए खड़ा हुआ, पर हार गया। 37वें वर्ष में काँग्रेस की सीनेट के लिये खड़ा हुआ, किन्तु हार गया । 42वें वर्ष में पुनः सांसद पद के चुनाव के लिये खड़ा हुआ और फिर हार गया । 47वें वर्ष में उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हुआ, पर परास्त हो गया । लेकिन वही व्यक्ति 51 वर्ष की उम्र में अमेरिका का राष्ट्रपति बना । उसका नाम था अब्राहिम लिंकन | सम्यग्दृष्टि को सन्मार्ग तथा तत्त्वों पर अविचल श्रद्धा होती है। 'रत्नकरण्ड श्रावकचार' ग्रंथ में श्री समन्तभद्र आचार्य ने लिखा है इदमेवदृशमेव तत्त्वं नान्यन्न चान्यथा । इत्यकम्पायसाम्भोवत्सन्मार्गेऽसंशया रुचिः । ।11 ।। जिस प्रकार तलवार पर चढ़ाया हुआ लोहे का पानी अकम्प / निश्चल होता है, उसी तरह सन्मार्ग के विषय में तत्त्व, आगम और तपस्वी का स्वरूप यही है, ऐसा ही है, अन्य नहीं है, और अन्य प्रकार नहीं है। ऐसी जो 456 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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