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________________ है। जैसे बाजार में अनेक वस्तुयें रहते हुए भी हमारी दृष्टि वहीं जाती है जिसकी हमें जरूरत है, वैसे ही सम्यग्दृष्टि को गुण-ही-गुण दिखाई पड़ते हैं। अपने अंदर अनेक गुणों के रहने के बाद भी वह कभी अपनी प्रशंसा नहीं करता, अपितु अपने दोषों को ही बताता है। दूसरों के दोषों की उपेक्षा कर उनके गुणों को प्रकट करता है। तात्पर्य यह है कि वह अपने दोषों को सदा देखता है तथा दूसरों के गुणों को । अपने गुणों को छिपाता है तथा दूसरे के दोषों को। अपनी निंदा करता है तथा दूसरों की प्रशंसा। दूसरों के दोषों तथा अपने गुणों को छुपाने के कारण इस गुण का नाम उपगूहन है। अपने गुणों में निरंतर वृद्धि करते रहने के कारण उसके इस गुण को उपवृंहण गुण भी कहते हैं। 6. स्थितिकरण अंग:- सम्यग्दृष्टि कभी किसी को नीचे नहीं गिराता। वह सभी को ऊँचा उठाने की कोशिश करता है। अपने आपको भी वह हमेशा मोक्षमार्ग में लगाये रखता है। यदि कदाचित् किसी परिस्थितिवश वह उससे स्खलित होता है, तो बार-बार अपने को स्थिर करने में तत्पर रहता है। उसी तरह किसी अन्य धर्मात्मा को किसी कारण से अपने मार्ग से स्खलित होते देखकर, उसे बहुत पीड़ा होती है। वह येन-केन-प्रकारेण उसे सहायता देकर उसकी धार्मिक आस्था दृढ़ करता है। यह उसका स्थितिकरण अंग है। 7. वात्सल्य अंग:- “वात्सल्य" शब्द “वत्स' से बना है। "वत्स" का अर्थ है "बछड़ा"। जिस प्रकार गाय अपने बछड़े के प्रति निःस्वार्थ, निष्कपट तथा सच्चा प्रेम रखती है, उसमें कोई बनावटीपन नहीं होता, उसे देखकर उसका रोम-रोम पुलकित हो जाता है, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि अपने साधर्मी बन्धुओं के प्रति निश्छल, निःस्वार्थ और सच्चा प्रेम रखता है। उसमें कोई दिखावटी या बनावटीपन नहीं रहता। उन्हें देखकर उसे उतनी ही प्रसन्नता होती है, जितनी कि किसी आत्मीय मित्र से मिलकर होती है। वह सबके प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना रखता है। यह उसका वात्सल्य अंग है। 8. प्रभावना अंग:- सम्यग्दृष्टि की यह भावना रहती है कि जिस प्रकार हमें सही दिशा (दृष्टि) मिली है, सत्य धर्म का मार्ग मिला है, उसी प्रकार सभी लोगों का अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो, उन्हें भी दिशा मिले, वे भी सत्य धर्म का पालन 0 4510
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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