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________________ है, रंज है, सारी बातें हो रही हैं, लड़ाइयाँ हो रही हैं, झगड़े हो रहे हैं, तो वहाँ धर्म नहीं होगा। इस जीव ने सब व्यवस्थायें कीं, पर यदि अपनी व्यवस्था नहीं की, तो क्या है? यह सब क्षणिक बातें हैं, मिट जाने वाली बातें हैं । इससे आत्मा को क्या मिलेगा? अपनी व्यवस्था करना सर्वप्रथम कर्तव्य है । अपनी व्यवस्था के मायने अपने घर की नहीं, अपने कुटुम्ब की नहीं, अपने परिवार की नहीं, परन्तु अपना रूप पहिचान में आ जाय, यही इसकी व्यवस्था है। एक कथानक है कि एक बाबू साहब । वह शाम के बाद अपने दफ्तर की सुन्दर व्यवस्था में लग गए । जहाँ जो चीज रखना चाहिए, उन्होंने वहाँ पर रक्खी। घड़ी जहाँ रख दी, तो उस जगह लिख दिया घड़ी । जूते जहाँ रख दिये, तो वहाँ पर जूते लिख दिया । कमीज, कोट इत्यादि जहाँ पर रख दिये, तो वहाँ पर कमीज, कोट लिख दिया । इस तरह सारी व्यवस्था बनाते-बनाते 9 बज गए, नींद आने लगी, परन्तु व्यवस्थाओं का बनाना नहीं छोड़ा। खुद पलंग पर जब जाकर बैठे तो उस पलंग में भी लिख दिया मैं, और उसी पलंग पर सो गए। सुबह सोकर जागे तो घूम-घूम कर देखते हैं कि हमारी सब व्यवस्था ठीक है कि नहीं? घड़ी की जगह पर घड़ी, छड़ी की जगह पर छड़ी तथा अन्य चीजें भी ठीक-ठीक उसी जगह पर रखी हुई हैं जहाँ पर रख दिया था। पर 'मैं' नहीं दिखता। गौर से देखते हैं, पर 'मैं उस पलंग से नहीं टपका । उन्होंने सोचा कि 'मैं' तो गुम गया है। नौकर को झट बुलाया, बोले- 'मनुवा, ओ मनुवा! यहाँ आओ। बड़ा गजब हो गया है। मेरा 'मैं' कहीं गुम हो गया है।' नौकर यह सुनकर हँसने लगा और मन में सोचा कि क्या बाबू जी का दिमाग खराब हो गया है? नौकर बोला-'बाबू जी ! घबराओ नहीं। आपका 'मैं' आपको मिल जायेगा। आप थके हुए हैं, जरा-सा आराम कर लें। आपका 'मैं' निश्चित ही मिल जायेगा।' बाबू जी को विश्वास हो गया कि यह पुराना नौकर है, झूठ नहीं बोल रहा है। बाबू जी पलंग पर लेट गए। जब सोकर जागे, तो नौकर बोला कि अब आपका ‘मैं' मिला कि नहीं? बाबूजी ने जब अपने आप को टटोला, तो बोले कि हाँ, मिल गया मेरा 'मैं' । तुम्हें धन्यवाद । U 443 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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