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________________ आत्मीय आनन्द अपने ज्ञानरस से आता है, बाहरी पदार्थों से नहीं आता। अतः बाहरी पदार्थ तो दुःख के ही कारण होते हैं। जैसे कभी-कभी बच्चे दूसरे बच्चे को, जिसके हाथ में लूट का आम हो उसे, आम ले लेने के लिए छेड़ते हैं और पीटते हैं। यदि वह आम को फेक दे, तो सारे बच्चे पीटना छोड़ देंगे। इसी प्रकार पक्षी दूसरे पक्षी से मांस का टुकड़ा छीनते हैं, उस पर अनेक आक्रमण करते हैं, पर यदि वह उस टुकड़े को छोड़ दे, तो पक्षी आक्रमण करना छोड़ देंगे। इसी तरह ये जगत के जीव जो दुःखी हो रहे हैं, लोग जो पिट रहे हैं, इसलिये कि पर को अंगीकार कर रहे हैं। इस काम कर लो, पर की तृष्णा छोड़ दो, तो सबसे मिलने वाली विपदा समाप्त हो जायेगी, सारी तृष्णा यहीं खत्म हो जायेगी। जानने मात्र से ही आनन्द है और उसमें ही कर्म की निर्जरा होती है। आप-हम स्वयं कल्पवृक्ष हैं या चिन्तमणि हैं। जैसा मानो, तैसा बन जाओ। अब बताओ कि शद्ध बनना चाहते या अशद्ध बनना चाहते हो? यदि हम अपने को अशुद्ध देखना चाहें, तो अशुद्ध बने रहेंगे और यदि हम अपने को शुद्ध देखना चाहें, तो शुद्ध बन जायेंगे। जैसी मैं उपासना करूँ, तैसा मैं बन जाऊँ। राम, हनुमान, भरत, बाहुबलि भगवान् कैसे बन गये? इन्होंने अपने आप में शुद्ध आत्मा की उपासना की। मैं शुद्ध चैतन्य मात्र हूँ। मुझमें कोई बखेड़ा नहीं है। मुझमें किसी दूसरे का अस्तित्व नहीं है। मैं अपने ही तत्त्व में हूँ, ज्ञान में हूँ, सबसे निराला हूँ। जहाँ इस 'केवल' की भावना की, तो 'केवल' ही रहोगे। 'केवल' रह जाने का नाम भगवान् है। अपने को 'केवल' देखो तो केवल बन जाओगे। और अपने को दूसरा रूप देखो, तो दूसरा रूप बन जाओगे। जैसा अपने को देखोगे, वैसा ही अपने को बना लोगे। किसी सेठ से किसी का मुकदमा था। सेठ के विपक्षी वकील ने सलाह दी कि सेठ मुकदमें में जायेगा, वहाँ तुम पहुँच जावो। 5-10 आदमियों से जैसे टिकट देने वालों से, तांगे वालों से, पुलिस वालों से बता देना कि अगर सेठ जी आवें तो उनसे कहना कि सेठ जी! तुम्हारा चेहरा आज क्यों गिर गया है? आज तो चेहरा बिल्कुल बदल गया है, बीमार थे क्या? सेठ जी टिकट लेने गये, तो 0 4400
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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