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________________ गालियाँ दी हैं, इससे रोटियाँ नहीं बनाईं। तो वह चौथा लड़का बोला कि अम्मा! बाप-माप को हम अभी देख लेंगे, तू तो रोटी बना, हमें तो भूखे लगी है। देखो, भैया! आँख खुलने के बाद स्त्री में चतुराई आयी, लोगों को देखा, विकल्प बढ़े, विकार बढ़ा, उस ही का फल देखो चौथे लड़के ने क्या कहा? भैया! यहाँ कोई आनन्द का साधन नहीं। आपको जो आनन्द आता है, वह लौकिक एवं विनाशीक आनन्द है। आपको चाहे जो समय हो, कुछ भी साधन हों, सर्वत्र जो आनन्द मिलता है, वह आनन्द स्वयं का ही मिलता है। इस वास्ते ऐसा निर्णय करके, 'मेरे वास्ते में ही जिम्मेदार हूँ। मैं अपने परिणामों को सदा शुद्ध बनाता रहूँ। अपने स्वभाव की दृष्टि कर सकूँ।' ऐसा भाव बनाए रहें। किसी भी प्राणी का अकल्याण मन में न आये, ऐसा भाव बना लें तो बेड़ा पार है अन्यथा दुःख ही है। भैया! मनुष्य कुछ कर तो सकता नहीं, केवल भाव करता है। जैसे बच्चों की पंगत होती है, तो है क्या उनके पास? कुछ नहीं। फिर भी कहते हैं पत्ते परस कर कि रोटी खावो। केवल कंकड़ परोस कर कहते हैं कि गुड़ खावो । अरे! जब कल्पना ही करना है, तो पत्तों को रोटी कहकर क्यों परोसते हो? पूड़ी कहकर परोसो, कंकड़ को लड्डू कह लो। इसी तरह केवल सोचना ही है तो बढ़िया कल्पना करो। वहाँ तो भैया! परमार्थ नहीं, जबकि यहाँ तो परमार्थ है, सत्य है। सो मनुष्य कुछ कर नहीं सकता सिवाय सोचने के, तब बुरा ही क्यों सोचें? अच्छा सोचें। अपनी निधि, अपना भगवान्, अपना स्वामी जो कुछ है, वह मैं ही अपने आप हूँ। मैं ज्ञानस्वरूपी आत्मा हूँ। परद्रव्य परमाणु मात्र भी मेरा नहीं हैं। ज्ञानी ज्ञान के स्वरूप को जानता है। ज्ञान का जानना, इसी से तो आत्मज्ञान हो जाता है और लगन भी मालूम पड़ जाती है। हमें करना क्या है? क्या जानना है? कहाँ जानना है? जानने का स्वरूप क्या है? जो जानने का स्वरूप जानो, यह यथार्थ ज्ञान कहलाता है। बोधिदुर्लभ भावना में आता है कि सब मिलना सरल है। सोना, चांदी सब मिलना सरल है, परन्तु यथार्थ ज्ञान मिलना कठिन है। और-सब ज्ञान मिल जाता है, परन्तु जानने का जानना कठिन है। जो जानने वाला है, वह क्या है? इस शोध का पता नहीं लगता 0_433_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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