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________________ को जितना भरो, वह उतना ही गहरा होता चला जाता है। इस धन-संपत्ति में, इन बाह्य पदार्थों में जरा भी सुख नहीं है। ‘सब विधि संसार असारा, इसमें सुख नाहिं लगारा।' यह संसार सब प्रकार से असार है, इसमें लगार मात्र भी सुख नहीं है। अभी आपने इस संसार को पहचाना नहीं है। आप श्रीराम को भगवान् मानकर पूजते हो। इसी संसार ने उनको वनवास दिया था और आप इस संसार में सुख ढूँढ़ रहे हो, रमे हुये हो। जो संसार आपके भगवान् का नहीं हुआ, वह आपका कैसे हो सकता है? वो तो शक्तिशाली थे, सामर्थ्यवान् थे, इसलिये इन कष्टों से उबरकर मोक्ष के महासुख को प्राप्त हो गये, पर आपकी स्थिति क्या होगी? संसार की दयनीय दशा को देखकर कबीरदास जी ने लिखा है... चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।। इन दो पाटों के बीच में कोई साबुत नहीं बचता। जब चक्की में अनाज गिरता है और दो पाटों के बीच में पहुँचता है, तो सारे-के-सारे दाने पिसते चले जाते हैं। पिताजी की बात सुनकर बेटा कमाल हँसा और बोला - चलती चक्की देखकर, हाँसी आवे मोय। कीली से जो लग गया, मार सके न कोय।। जो दाने कीली के सहारे लग जाते हैं, वे दाने साबुत रह जाते हैं। उन्हें कोई नहीं पीस सकता। ये संसार भी एक चक्की के समान है, जिसमें समस्त प्राणी पिस रहे हैं, दुःखी हो रहे हैं। पर जो व्यक्ति धर्मरूपी कीली (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की कीली) से लग जाता है, वह संसार के कष्टों से बचकर मोक्षरूपी निराकुल सुख को प्राप्त कर लेता है। फिर वह अनन्तकाल तक अनन्तसुख का उपभोग करता है। आज के बाद हमें एहसास होना चाहिए कि हमने बैग में जो भरा है, संसार की किरणें भरी हैं, इस संसार की तृष्णा भरी है। जिस दिन हम उस बस्ते को खोलकर देखेंगे तो उसमें कुछ भी नजर नहीं आयेगा, क्योंकि वह कल्पना मात्र _0_43_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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