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________________ ही वह अज्ञान से भयभीत होकर नीचे गिर गया और सिंह का शिकार बनकर मर गया, लेकिन मैंने छाया को अपनी नहीं माना, इसलिये मरण से बच गया। इसके बाद उस युवा बंदर ने ऐसा विचार किया कि सिंह ने मेरे दादा (वृद्ध बंदर) को मूर्ख बनाया। अब मैं भी उसे उसकी मूर्खता का बोध कराऊँगा। वह बोला-हे सिंह काका! तुम इस जंगल के राजा हो, परन्तु इसी जंगल में तुम्हारे जैसा दूसरा सिंह आया है। वह कहता है कि मैं इस जंगल का राजा हूँ, तुम नहीं हो। तब उस सिंह ने क्रोध में आकर कहा-हमारे राज्य में हमारी सत्ता से इंकार करने वाला यह दूसरा सिंह कौन आया? चलकर बताओ वह कहाँ रहता है? मैं उसकी खबर लूँगा। बंदर बोला काका! उस सामने के कुँए में वह सिंह रहता है। बस, सिंह तो दौड़ा और कुँए में झाँककर देखा, तो उसे वहाँ उसके ही जैसा एक सिंह दिखाई दिया । वास्तव में वह तो उसकी ही छाया थी, वह कोई सच्चा सिंह नहीं था, फिर भी मूर्ख सिंह छाया को ही सच्चा सिंह समझकर क्रोध T में अन्धा होकर कुँए में कूद गया और अंत में वह मूर्ख सिंह कुँए में डूबकर मर गया। इसी प्रकार सिंह और बंदर के समान अज्ञानी जीव इस छाया के समान शरीर को अपना मानकर संसार में जन्म-मरण कर रहे हैं और वैसे ही भवरूपी कुँए में गिरकर दुःखी हो रहे हैं। लेकिन जो सच्चा ज्ञान कर शरीर से भिन्न अपनी आत्मा का स्वरूप जानते हैं, उनका जन्म मरण नहीं होता। कुछ दिनों बाद फिर से ऐसा हुआ कि पहले की घटना के समान ही उस जंगल में वृक्ष पर बंदर बैठा था और वहाँ एक भूखा सिंह आया। सिंह ने देखा कि नीचे जो बंदर की छाया हिलती-डुलती दिखाई दे रही है, वही बंदर है। उसने छाया के ऊपर पंजा मारा। वह पंजा मारते-मारते थक गया, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आया। इसी प्रकार रूपये पैसे में झपट्टे मार-मार कर यह जीव भी थक गया, फिर भी इसको थोड़ा-सा भी सुख नहीं मिला। NU 3700
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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