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________________ बंदर की छाया को ही बंदर मानकर छाया पर झपट्टा मारा। उसी समय डाल पर बैठा हुआ बंदर सिंह को संबोधन करता हुआ कहता है - ___ अरे, जंगल के राजा! मैं तो यहाँ डाल पर बैठा हूँ। यह जो नीचे छाया पड़ रही है, वह मैं नहीं हूँ। उससे तुम्हारा पेट नहीं भरेगा, इसलिये बेकार मेहनत मत करो। छाया पर तुम चाहे जितने झपट्टे मारो, पर उससे तुम्हारे हाथ कुछ भी आने वाला नहीं है। बंदर के इतने समझाने पर भी सिंह तो बंदर की छाया पर पंजे मार-मार कर व्यर्थ कोशिश करता रहा और अंत में परेशान होकर थक गया। लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला। इसी प्रकार जगत के राजा के समान चैतन्य सिंह आत्मा को भी सुख की भूख लगी है। वह छाया के समान बाह्य विषयों से सुख की माँग करता है और विषयों की तरफ झपट्टे मार-मार कर दुःखी होता है। तब मुनिराज उसे समझाते हैं - ___ अरे जीव! सुख तो तेरी आत्मा में ही है। छाया के समान शरीर में अथवा विषयों में सुख नहीं है, इसलिये तू बाहर में सुख की खोज मत कर । बाह्यविषयों में तुम चाहे जितने मिथ्या प्रयत्न करो, लेकिन उनसे तुम्हें कभी भी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। एक दूसरी कहानी है, जिसमें सिंह समझदार है और बंदर मूर्ख है - एक वृक्ष के ऊपर एक बंदर रहता था। वहाँ एक सिंह आया। उस सिंह के मन में बंदर का शिकार करने का भाव आया, लेकिन वह बंदर तो ऊँचे वृक्ष पर बैठा था, इसलिए सिंह उसका शिकार कैसे बन सकता था? लेकिन सिंह चालाक था। उसने सोचा कि यह मूर्ख बंदर जमीन पर पड़ रही उसकी छाया को ही स्वयं मान रहा है, इसलिये बंदर के सामने सिंह ने जोर से गर्जना की और उसकी छाया के ऊपर पंजा मारा। बंदर अपनी छाया के ऊपर पंजे मारते देख घबरा गया। हाय-हाय! सिंह मुझे पंजा मार रहा है। ऐसा सोच भयभीत होकर वह जल्दी ही नीचे गिर गया और सिंह ने उसे सचमुच में अपना शिकार बना डाला और उसका प्राणान्त हो गया। उस मूर्ख बंदर ने यह नहीं सोचा कि 0 368 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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