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________________ हम मोह के कारण ही अपने आपको दुनियाँ का कर्ताधर्ता मानते हैं, पर यथार्थ में पूछो तो कौन कहाँ का? कहाँ की स्त्री, कहाँ का पुत्र? कौन किसको अपनी इच्छानुसार परिणमा सकता है? कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनवा जोड़ा। ठीक हम लोग भी भानुमती के समान कुनवा जोड़ रहे हैं। कौन किसका पिता है? कौन किसका पुत्र है? यह मात्र पर्याय की ओर दृष्टिपात करने पर ही दिखायी देता है। यह मोह का ही परिणाम है। यह मोह छूट जाये, तो वास्तविकता मालूम पड़ने लगती है कि शरीर का अवसान होने पर यह सारे संबंध छूट जाते हैं। शरीर यहीं पड़ा रह जाता है, और जीव क्षण भर में कहाँ पहुँच जाता है किस रूप में उत्पन्न हो जाता है, पता भी नहीं पड़ता। ___ कैसा वैचि=य है। एक नाटक की तरह रंगमंच पर जैसे विभिन्न पात्र आ रहे हैं, जा रहे हैं, और देखने वाला जान रहा है कि यह सब नाटक है, फिर भी उसमें हर्ष-विषाद करने लगता है। इसी प्रकार यह सारा संसार रंगमंच की तरह है। जो संसार से विरक्त हैं, ऐसे वीतराग सम्यग्दृष्टि को यह सब नाटक की भांति दिखाई पड़ने लगता है। वह सत्य को जान लेता है तो पर्याय में मुग्ध नहीं होता, हर्ष-विषाद नहीं करता। यदि हम बंधन से छूटना चाहते हैं, तो हमें मोह को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये। हम लोग बारह भावनाओं में पढ़ते हैं - आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय। यूँ कबहूँ इस जीव को, साथी सगा न कोय ।। अकेले उत्पन्न हुए और अकेले ही मर जाना है। यदि आत्म कल्याण करना चाहें, तो भी अकेले ही करना होगा। पर अकेले होने की बात और, मरने की बात ये दोनों बातें संसारी प्राणी को नहीं रुचतीं, जबकि यही सत्य है कि कोई किसी के साथ आता-जाता नहीं है। गर्भ और मृत्यु की पीड़ा स्वयं को ही सहनी पड़ती है। माँ के गर्भ में अकेले आये थे और चिता पर भी अकेले ही लेटेंगे। प्रत्येक जीव को अपने किये हुये कर्मों का फल अकेले ही भोगना पड़ता है। एक लुटेरा जंगल में एक संघ को लूट रहा था, तब संघ में रहने वाले एक महात्मा ने कहा कि भाई तू यह लूट-पाट करता है, परन्तु मेरी एक बात सुन, लूटपाट से प्राप्त होने वाले धन को भोगने में जो तेरे कुटुम्बीजन भागीदार होते su 363 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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