SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं, संयम धारण करने की क्षमता है, तब तक संयम को अवश्य धारण कर लेना चाहिये। क्योंकि वृद्धावस्था में जब शरीर साथ नहीं देता, इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं और ज्ञान काम नहीं करता, तब हाथ क्या आता है, केवल पश्चाताप ही हाथ आता है। अतः संयम धारण करने में ज्यादा विचार नहीं करना चाहिये । यह शरीर भोगों के लिये नहीं मिला है और न ही देखने के लिये मिला है। इसके द्वारा तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र को धारण कर आत्मा का कल्याण कर लेना चाहिये। अभी 100-200 वर्ष पहले पं. दौलतराम जी, भैया भगवती दास जी आदि थे, जिनमें यह निर्णय रहता था कि केवल एक रुपया कमाया, वही बहुत है। आज एक रुपये की जगह 500 रुपये कमा लेने का ही भाव रहे तो भी ठीक है। एक रुपया में एक आना मुनाफा या एक पगड़ी में एक आना मुनाफा । यदि 16 रुपये का माल बेचा तो 16 आना अर्थात एक रुपये का मुनाफा हो गया। बस, इतना होते ही वे तुरन्त दुकान बंद कर देते थे और मंदिर जी में आकर धर्म ध्यान करते थे, स्वाध्याय व धर्मचर्चा में समय व्यतीत करते थे। आत्मा के दर्शन कर लें और उसी आत्मीय आनन्द का पान कर लें, तो यही आत्मानुभव पार कर देनेवाला है, और शेष असार काम है। ऐसी धुन लगने के कारण दुकान से होते हुये मुनाफे को छोड़कर चले आये और मंदिर में आकर धर्म की, तत्त्व की चर्चा की। धर्म की चर्चा करने, सुनने से स्वाध्याय तो हुआ। इतना तो संतोष कर रहे हैं कि राग की आग में नहीं जल रहे हैं। वीतराग भगवान् के मंदिर में बैठे हैं, प्रभु की वाणी को सुन रहे हैं, मोह से तो दूर हो रहे हैं। मोह से दूर होने पर ही शान्ति का मार्ग मिलेगा। मेरी दृष्टि बाहर नहीं होना चाहिये। मुझे यह समझना चाहिये कि मैं सबसे निराला, शुद्ध, चैतन्य मात्र आत्मा हूँ। मैं किसी भी स्त्री स्वरूप नहीं हूँ, मैं किसी अन्य रूप नहीं हूँ। मैं एक चैतन्य मात्र आत्मा हूँ -इस प्रकार से जो अन्तर में अपने आपको निरखता है, वह शान्ति का मार्ग प्राप्त कर सकता है। जैसे कुछ लोग कहीं बाहर चले जा रहे हैं, मधु-मक्खियाँ सिर पर मंडरा रही हैं। शरीर में बराबर मक्खियाँ चोट मार रही हैं। यदि वे व्यक्ति किसी su 345 an
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy