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________________ बातचीत की कुशलता से ठग ने सेठ के साथ अच्छा परिचय कर लिया। परन्तु सेठ ने ठग की चाल-ढाल को पहचान लिया था। जब शाम होने लगी तो दोनों एक ही धर्मशाला में रुक गये। सेठ तो चलते-चलते थक चुका था, अतः बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गई। ठग बिस्तर पर लेटे-लेटे सोच रहा था कि सेठ के पास इतना जोखिम है, फिर भी कैसे चैन से सो रहा है। दूसरे दिन भी सेठ और ठग की यात्रा साथ-साथ होने लगी। बातचीत के दौरान ठग ने इतना तो जान लिया कि सेठ ने अपना सारा धन देकर एक बहुमूल्य हीरा खरीदा है। अब ठग इस फिराक में रहने लगा कि सेठ हीरे की डिबिया को रखता कहाँ है ? ठग ने जान लिया कि सेठ उस डिबिया को हरदम अपने साथ ही रखता है। ठग ने निर्णय लिया कि आज रात में मैं उस डिबिया को अवश्य निकाल लूंगा। चलते-चलते जब शाम होने लगी तो दोनों एक साथ ही धर्मशाला में ठहरे। मध्यरात्रि में जब सेठ सो रहा था तब ठग ने उसके सारे कपडे टटोल लिये किन्त उसे डिबिया नहीं मिली। आखिर हारकर वह भी सो गया। जब ठग की दूसरी रात्रि भी असफल सिद्ध हुई तो वह सोचने लगा कि ये सेठ भी गजब का है। दिन में तो उसकी डिबिया जेब में दिखाई देती है किन्तु रात्रि में पता नहीं कहाँ गायब हो जाती है। इस तरह यात्रा की अनेक रात्रियाँ व्यतीत होती रहीं, किन्तु ठग को कोई रहस्य मालूम नहीं हो सका। अब तो पड़ाव की अंतिम रात्रि थी। ____ ठग ने फिर से एक बार सेठ का सामान, बिस्तर, कपड़े इत्यादि सब टटोल लिये। परन्तु आश्चर्य उसे डिबिया नहीं मिली। सुबह होते ही दोनों चल पड़े और जब सेठ का गाँव दूर से नजर आने लगा, तब ठग के मन में भारी उथल-पुथल थी। उसे बार-बार ये ही अफसोस हो रहा था कि मैं इस सेठ को ठगने में असफल रहा। उसने सेठ से कहा-सेठ जी! मैं आपकी बुद्धि को प्रणाम करता हूँ। बिदा होते-होते आज आप बस मुझे इतना राज बता दीजिये कि दिन में दिखाई देनेवाली आपकी डिबिया रात में कहाँ छिप जाती थी। ये प्रभाव किसी दैवी शक्ति का है या किसी मंत्र-शक्ति का? _0_324_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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