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________________ तुच्छ पर द्रव्य को स्वीकार नहीं करते। राजा बोला-मुझे भी उसकी चाबी दे दीजिये। मैं भी वह अनंत वैभव का भण्डार ले लूँगा। मुनिराज कहते हैं कि इसके लिए तुम्हें मेरे साथ कुछ दिन रहना होगा, तब उसे पा सकोगे। राजा बोलता है-हाँ-हाँ, रह लूँगा। इस तरह राजा मुनिराज के पास रहने लगा। मुनिराज उसे कुछ धर्म का उपदेश देते रहे। कुछ दिन बाद मुनिराज कहते हैं कि तुम्हे मेरा अनंत वैभव का खजाना देखना है तो तुम मेरे-जैसे बन जाओ। राजा ने सोचा कि यही विधि होगी अनंत वैभव का खजाना देखने की, इसलिए वह मुनिराज बन जाता है, मुनिराज जैसी क्रियायें करने लगता है। अब उसे बड़ी शांति महसूस होने लगी। कुछ दिन बाद मुनिराज बोले- राजन्! अब तुम अपनी यह धन-संपदा वापिस ले लो। तो वह पूर्व राजा बोलता है कि, प्रभु! अब कुछ नहीं चाहिये। अब तो मुझे यह धन संपदा तुच्छ लग रही है। इसके कारण तो पहले मैं बहुत दुःखी था। दिन-रात इच्छाएँ चिंताएँ बनी रहती थीं, पर अब जब मेरी समस्त इच्छायँ समाप्त हो गईं हैं, तो मुझे अपने अनन्त वैभव तथा उसके साम्राज्य का पता चल गया। अब तो मुझे अपने रत्नत्रय खजाने का पता चल गया। जब इच्छाएँ थीं तो राजा दुःखी था और अब इच्छाएँ समाप्त हो गईं, तो वह सुखी हो गया। वास्वत में इच्छाओं का होना ही दुःख है और इच्छाओं का ना होना ही सुख है। अतः अपनी शक्ति को पहचानो और इन इच्छाओं को घटा कर अपना कल्याण करो। आचार्य योगीन्दुदेव ने लिखा है - यः जिन: स अहं एतद्, भावय निर्धान्तम् । मोक्षस्य कारणं योगिन, अन्यः न तन्त्रः न मन्त्रः ।। जो जिनदेव हैं, वह मैं हूँ। इसकी भ्रान्तिरहित होकर भावना कर। हे योगिन्! मोक्ष का कारण कोई अन्य तन्त्र-मन्त्र नहीं है। स्वभाव का आश्रय करना, अपने आत्मा के शुद्ध स्वरूप का परिचय होना, इससे बढ़कर दुनियाँ में कोई सम्पदा नहीं है। बाकी जिसे सम्पदा मानते हैं, तो जब तक जीवित हैं, तब तक बहुत कलंक में लगे हैं और जब मरण हो जायेगा, तो सब-का-सब यहीं धरा रह जायेगा और आत्मा को अकेला ही जाना पड़ेगा। 0 315_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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