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________________ आत्मा को अनुभव में लेकर अपने शुद्ध स्वरूप को पहचानो। ____ जो चेतन अचेतन दोनों प्रकार के परिग्रह को मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से सर्वथा छोड़ देते हैं। तथा लोक व्यवहार तक से विरत रहते हैं, वे दिगम्बर मुनिराज ही रत्नत्रय के धारी होते हैं। अतः इन परपदार्थों की इच्छा छोड़कर जीवन में रत्नत्रय को धारण करो। हम सोचते हैं बस हमारी यह इच्छा पूरी हो जाये तो मुझे शांति मिलेगी, पर ध्यान रखना इस इच्छा का पेट इतना बड़ा है जिसे आज तक कोई नहीं भर सका। ___एक बार की बात है कि एक मुनिराज जंगल में बैठे ध्यान लगा रहे थे। एक सेठ के लड़के की शादी थी। उस सेठ ने ज्यौनार की थी। सेठ ने जंगल में जाकर मुनिराज से कहा कि महाराज आप भी भोजन कर लीजिये। मुनिराज ने मना कर दिया। जब सेठ ने विशेष आग्रह किया तो मुनिराज ने सामने से आती हुई एक छोटी सी लड़की की ओर इशारा करके कहा उसे ले जाओ। लड़की कहने लगी की मेरा नाम इच्छा है, यदि तुम मेरा पेट भर सको तो मुझे साथ ले जाना, वरना मत ले जाना। सेठ कहने लगा कि तुम छोटी-सी लड़की हो, तुम क्या खाओगी ? मैं तुम्हारा पेट अवश्य भर दूंगा। इच्छा रूपी लड़की बोली-यदि तुम मुझे पेटभर भोजन न करा सके तो मैं अंत में तुम्हें खा जाऊँगी। सेठ ने कहा कि ठीक है। ऐसा कहकर सेठ ने उसे घर लाकर भोजन करने बैठा दिया । इच्छा नाम की लड़की ने भोजन करना शुरू कर दिया। सेठ के यहाँ बना पाँच हजार व्यक्तियों का भोजन खाकर भी वह भूखी रही, तो सेठ ने कहा कि घर में जितनी सामग्री है सब बनाकर इच्छा का पेट भरो, नहीं तो वह मुझे खा जायेगी। इस प्रकार उसे घर की सारी सामग्री बनाकर खिला दी, तो भी उसकी शांति नहीं हुई। इस प्रकार जब वह सेठ उस इच्छा नाम की लड़की का पेट भरने में असफल रहा, तो वह उससे बचने के लिये भागा। लेकिन वह लड़की भी उस सेठ के पीछे भागी, मैं तो तुम्हें अवश्य ही खाऊँगी। सेठ ने भागते-भागते सारे गाँव का चक्कर लगा लिया। अंत में वह मुनिराज के पास पहुँचा कि महाराज! मुझे बचाइये इस लड़की की भूख तो मुझे खा जायेगी। महाराज को देखकर वह लड़की दूर से ही रुक गयी। महाराज बोले यदि तुम सुखी रहना DU 3120
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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