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________________ कैसे? चर्म दूर होने पर तन से रोम समूह रहें कैसे ? यदि अपना कल्याण करना चाहते हो तो इस मोह से सजग और सावधान रहो, गाफिल न हो । एक बार किसी के घर एक व्यक्ति पहुँचा। घर के मालिक ने उसकी खूब आव-भगत की। जब विश्राम करने का समय हुआ तब घर के मालिक ने उस व्यक्ति को एक सब सुख सुविधाओं से सम्पन्न बहुत बढ़िया कमरे में विश्राम करने के लिये कहा । जैसे ही वह व्यक्ति विश्राम करने के लिये पलंग पर लेटने लगा तो घर के मालिक ने कह दिया कि भइयाजी ! और तो कोई असुविधा की बात नहीं है, बस, इतना ही है कि अभी आपके आने से पहले ही इस कमरे में एक सर्प घुसा था। अब आप सोचिये, उस बढ़िया कमरे में जिसकी अभी-अभी प्रशंसा की गई थी क्या वह व्यक्ति सुख की नींद ले सकेगा ? उसे नींद तो तभी आयेगी जब सर्प उस कमरे से निकल जायेगा । यह तो एक दृष्टान्त मात्र है। हमारे अपने जीवन में भी दुःख के अनेक कारण विद्यमान हैं। जब तक दुःख के कारणभूत ये मोह, राग-द्वेष आदि विष र हमारे भीतर विद्यमान हैं, तब तक हम सुख की नींद कहाँ ले सकते हैं? इस संसार में दुःखों से बचने का उपाय यही है कि हम अपने भीतर जो दुःख के कारणभूत मोह, राग-द्वेष आदि परिणाम हैं उनको बाहर निकालने का प्रयास करें । दुःख के कारणभूत मोह, राग-द्वेष भाव जब तक मेरे भीतर विद्यमान हैं, मैं जागता रहूँ और हमेशा सजग व सावधान रहकर उन्हें निकालने का उपाय करता रहूँ। अज्ञान के कारण यह जीव रागादिक को अच्छा मानता है । शुभ - अशुभ बंध के फल मंझार, रति अरति करै निज-पद विसार । आतम-हित-हेतु विराग - ज्ञान, ते लखें आपकूँ कष्टदान | | छहढाला । । अज्ञानी जीव अपना चेतनरूप जो निज पद है, उसे भूलकर शुभ अशुभ बन्ध के फल में राग-द्वेष करता है, यह बन्ध तत्त्व की भूल है । तथा वैराग्य और ज्ञान जो परम सुख को देने वाले हैं, उन्हें वह कष्टदायक समझता है, यह संवर तत्त्व की भूल है। मिथ्यात्व के कारण यह जीव शुभ कर्मों के फल से प्राप्त इष्ट संयोग में 29 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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