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________________ नहीं है। बिजली चमकने से आत्मस्पर्श हो गया, पथ ज्ञात हो गया। जब-तक असंयत है, तब-तक साधन नहीं बनता । यहाँ असंयमरूपी रात्रि व्यतीत हो रही संयमासंयम का पालन है। रात्रि बीतने पर संयमासंयम रूपी पगडंडी से चला। भी कठिन है। यहाँ सारे बखेड़े साथ लगे हुए हैं । अब पूर्ण संयम के राजमार्ग पर आ चुका है। वहाँ एक रस है, कोई दुःख नहीं है । अयाचक वृत्ति से भोजन कर फिर स्वरूप में लीन हो गये । विहार करते-करते जैसे-जैसे स्थान समीप आ रहा है, वहाँ विकल्पों की गति मन्द पड़ गई है। फिर विश्रामस्थल पर पहुँच गये हैं और अब आनन्द में मग्न हो गये । सम्यक् प्रकार से मोक्षमार्ग की साधना करने से धीरे-धीरे जीवन की भाग-दौड़ समाप्त हो जाती है, पहले बाह्य जीवन की और फिर भीतरी जीवन की। और इस प्रकार एक लम्बे काल तक अभ्यास करते रहने पर वह दिन भी आ जाता है, जब कि साधक का बहिरंग व अन्तरंग क्षोभ पूर्णतः शांत हो जाता है और साक्षात् निश्चय धर्म जो समतारूप है, उपलब्ध करके खो जाता है अपने शान्तस्वरूप में सदा के लिये । जिनेन्द्र भगवान् की वाणी को प्राप्त कर हमें अपना आत्मकल्याण अवश्य ही कर लेना चाहिये। हमने यदि विषयरागवश इस उत्तम अवसर को खो दिया, तो आगे अनन्तानन्त काल तक इस पंचपरावर्तनरूप संसार में ही भटकना पड़ेगा। जिनेद्र भगवान् ने कहा है कि जो जीव सारे परद्रव्यों के मोह को छोड़कर संसार, शरीर और भोगों से उदासीन होकर, संयम को अपने जीवन में अंगीकर करके, तपों के माध्यम से, शुद्धात्मा की साधना करता है, वह अपने स्वरूप की उपलब्धि को प्राप्त होता है । उसके कर्मबन्धन स्वयं ही कट जाते हैं। संवर तथा निर्जरा में होनेवाला पुरुषार्थ यद्यपि एक ही जाति का है अर्थात् विकल्पों को रोकने का, तथापि "संवर" अनुकूल वातावरण में रहकर विकल्पों को दबाने का नाम है और 'निर्जरा' प्रतिकूल वातावरण में रहकर विकल्पों को उत्पन्न ही न होने देने के प्रयत्न का । संवर में थोड़े बल से काम चल जाता है, जबकि निर्जरा में अधिक बल की आवश्यकता होती है । वास्तविक निर्जरा तत्त्व, जो मोक्षमार्ग में कारणभूत है, वह अविपाक 264 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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