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________________ पुरुषार्थ है, जो कि केवल अभ्याससाध्य है। साधु प्रारंभ में बुद्धिपूर्वक विषय-कषायों से अपने को हटाकर परम पुरुष परमात्मा के गुणानुवाद में लगता है, आचार्यों द्वारा प्रणीत आगम के अभ्यास में लगता है। तीर्थवन्दना आदि धार्मिक कार्यों से भाव पवित्र करता है। जब वह अपने पर इतना नियंत्रण कर लेता है कि चित्तवृत्ति विषय-कषायों पर तथा तत्साधनों पर नहीं जाती, किन्तु अब अपने इष्ट पुरुषों व कार्यों में रुक जाती है, तब वह इनसे भी चित्त मोड़ता है। इन इष्ट महात्माओं- जैसा स्वयं बनने को प्रयत्नशील होता है। वह अपने चित्त को अपने स्वात्मचिंतन में सीमित करना प्रारम्भ कर देता है। परज्ञेय से चित्त हटाने पर वह स्वयं राग-द्वेषरहित वृत्ति पर उतर आता है। ज्ञान की वृत्ति राग-द्वेष से तथा उनके आलम्बनभूत पर-द्रव्यों से हटे और उपयोग अपने में सीमित हो जाय, यही मोक्ष का सच्चा पुरुषार्थ है, यही सच्चा निश्चय सम्यक्चारित्र है। अपना पुरुषार्थ अपने आत्मशुद्धीकरण में करें, यही मोक्षमार्ग है। संयताचारी साधु ही ऐसा करते हैं अथवा जो ऐसा करते हैं, वे ही संयताचारी हैं। वे ही समस्त कर्मों को आत्मा से विलग कर शीघ्र ही मोक्षसुख को प्राप्त करते हैं। हे भव्य! शुद्धात्मस्वरूप के सिवाय अन्य सब पंचेन्द्रिय के विषयरूप पदार्थ पराधीन, दुःखदायी और नाशवान् हैं। तू भ्रम से भूला हुआ असार भूसे के कूटने की तरह कार्य न कर । तू घर-परिवार आदि की चिन्ता करता हुआ मोक्ष कभी नहीं पा सकता। इसलिये उत्तम तप का ही बारम्बार बुद्धिपूर्वक अभ्यास कर, क्योंकि संयम-तप से ही कर्मों की निर्जरा कर मोक्षसुख को पा सकेगा। इस समय कर्मरूपी गहन वन में चिरकाल तक घूमने के बाद किसी भी प्रकार हमने आज विलक्षण विशेषता पा ली है ज्ञान की, वस्तुस्वरूप के पहिचान की, आत्मस्वभाव के परिचय की। हर दृष्टि से हमने परख लिया है और तब जान लिया है कि वास्तव में मैं यह ज्ञानज्योति स्वरूप हूँ। शेष तो यह सब कर्म की लीला है, माया की चीज है। जिसने ऐसा परिचय पा लिया, उस पुरुष को अमृत की बावड़ी मिल गई, जिसमें मग्न रहने पर फिर संसार का संताप नहीं हो सकता। अतः स्वभावदृष्टि की धुन बनाओ और उसके लिये शक्ति अनुसार संयम धारण करो। पर-पदार्थों एवं पर-भावों से दृष्टि हटाकर निजात्मदृष्टि का cu 262 un
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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