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________________ गुप्ति जिसके बल से संसार के कारणों से आत्मा की रक्षा होती है, उसे गुप्ति कहते हैं। आचार्य उमास्वामी महराज ने 'तत्त्वार्थसूत्र' जी में लिखा है-'सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ।' ___मनवचनकाय इन तीन योगों का सम्यक् प्रकार निग्रह करना गुप्ति कहलाता है। सम्यक् का अर्थ यहाँ सम्यग्दर्शनपूर्वक है। अतः गुप्ति सम्यग्दर्शनपूर्वक ही होती है। अज्ञानी को गुप्ति नहीं होती। जिस जीव के गुप्ति होती है, उस जीव के विषय-सुख की अभिलाषा नहीं होती। यदि जीव के आकुलता रूप परिणाम हों तो उसके गुप्ति नहीं होती। आचार्य श्री धर्मभूषण जी महाराज ने लिखा है - पाप क्रियाओं से आत्मा को बचाना गुप्ति है। ये तीन हैं- मनो गुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति। ___ मनो गुप्ति-मन को वश में करके धर्म ध्यान में लगाना तथा राग-द्वेष से अप्रभावित रखना मनोगुप्ति है। वचन गुप्ति-मौन रहना या शास्त्रोक्त वचन कहना तथा असत्य वाणी का निरोध करना वचन गुप्ति है। ___ काय गुप्ति-एकासन से बैठना, ध्यान स्वाध्याय में काय को लगाना तथा शरीर को वश में रखकर हिंसादि क्रियाओं से दूर रहना काय गुप्ति है। सम्यक् प्रकार निरोध मन, वच, काय आतम ध्यावते। तिन सुथिर मुद्रा देख मृग गण, उपलखाज खुजावते।। मन, वचन और काय को एकाग्र करके आत्मा का चिन्तन-मनन करना, ध्यान है। इस ध्यान की अवस्था में हिरण आदि जंगल के पशु उन्हें पत्थर का खम्भा समझकर खाज खुजाने लगते हैं, फिर भी मुनिराज ध्यान से विचलित नहीं होते। इसी को तीन गुप्ति विजय कहा जाता है। w 232 on
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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