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________________ इसके बाद एक सिद्धांतशास्त्री वहाँ से गुजरा। उसने भी उसकी आवाज सुनी। वह भी कुँए के पास गया । जाकर नीचे झाँका और अपना उपदेश प्रारम्भ कर दिया कि तुम्हारे पाप का उदय है । तुमने भी पिछले जन्म में किसी को कुँए में डाला होगा, उसका ही फल तुम्हें मिला है। अपना फल तो तुम्हें ही भोगना पड़ेगा। फल भोगकर कर्म से मुक्त हो जाओगे । प्रकृति ने मौका दिया है । व्यर्थ बाहर निकलने की कोशिश मत करो। यही तो अच्छा स्थान है। इससे अच्छा स्थान और कहाँ होगा? अकेले में भोग लो। बाहर आओगे तो लोग देखकर तुम्हारी हंसी उड़ायेगें। व्यर्थ में क्यों अपने को बदनाम करते हो। समता भाव भोग लो तो छुटकारा मिल जायेगा । उसने कहा- क्या तुमने कर्म सिद्धांत को पढ़ा नहीं हैं ? शायद उस सिद्धान्तशास्त्री ने शास्त्र की दो-तीन गाथायें भी उसे सुनाईं हों। सिद्धान्तशास्त्री उपदेश देकर चला गया, लेकिन उसे बचाया नहीं । उस सिद्धांतशास्त्री ने बात गलत नहीं कही थी। जो शास्त्रों में लिखा है और उसने पढ़ा है, वही तो कहा। जितना जानता था, उतना ही कहा था । मरता हुआ आदमी उसे दिखाई न पड़ा, सिद्धांत दिखाई पड़ा । आदमी डूब रहा था, उसे वह दिखाई न पड़ा, कर्म का फल उसे दिखाई पड़ रहा है। वह भी उपदेश देकर चला गया। एक नियतिवादी वहाँ से गुजरा। उसने भी उसकी आवाज सुनी और कुँए के पास गया। कुँए में नीचे झाँका और झाँकते ही कहा- कोई किसी का क्या कर सकता है ? एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का तो कुछ कर ही नहीं सकता। जिसका जो होना है, वह तो होकर ही रहेगा। आत्मा तो कभी मरती नहीं है, अजर-अमर है और शरीर तो क्षणभंगुर है, उसे तो कभी-न-कभी छूटना ही है । कल छूटे या आज छूटे, इससे क्या फर्क पड़ता है। जैसी तुम्हारी नियति है, वही तो हो रहा है। उस नियतवादी को भी मरता आदमी, तड़पता व्यक्ति, बिलखती आत्मा, दुःखी मनुष्य, पीड़ित मानव दिखाई न पड़ा, नियतिवाद दिखाई पड़ा । वह बेचारा कुँए में तड़पता रहा । कुछ समयोपरान्त वहीं से एक समाज सुधारक का निकलना हुआ । उसने भी आवाज सुनी और दौड़ा-दौड़ा कुएँ के पास गया। उसने अपना दुःख प्रगट 2272
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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