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________________ निचुड़ गया। बोला कि ऐसे निकलता है रस। यह न सोचा बुद्धि लगाकर कि चाकू से लोहे का अंश जाकर सारे फल का विनाश कर देगा। सोना बन गया और ग्रहस्थ लज्जित हुआ अपनी भूल पर। परन्तु अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत। विद्या को साधु अपने साथ ही ले गया। सर्व क्रिया ठीक होते हुये भी कोई ऐसी भूल जो दृष्टि में नहीं आती सर्व फल का विनाश कर डालती है और यथाकथित फल न मिलने पर बजाये अपनी भूल खोजने के प्राणी का विश्वास उस क्रिया पर से ही उठ जाता है और इस प्रकार बजाए हित के अपना अहित कर बैठता है। अतः हमें पहले से ही अपने अभिप्राय को पढ़ते रहना चाहिये ताकि सूक्ष्म-से -सूक्ष्म भूल का भी सुधार किया जा सके और क्रिया से वही फल प्राप्त किया जा सके जो कि उससे होना चाहिये। प्रत्येक क्रिया में भाव की महत्ता है। हमें पूजन करते समय पता ही नहीं रहता कि हम बोल क्या रहे हैं और उसका भाव क्या है। हम आदिनाथ भगवान की पजा करते हैं, उसकी जयमाला में आता है - आदीश्वर महराज हो, म्हारी दीनतणी सुन वीनती। चारों गति के मांहि, मैं दुःख पायो सो सुनो।। ऊट बलद भैंसा भयो, जापै लदियो भार अपार हो। नहिं चालयो जटै गिर परयो, पापी दे सोटन की मार हो।। म्हारी दीनतणी सुन वीनती। क्या कह रहे हैं? ऊँट हुआ, बैल हुआ और भैंसा हुआ। इन तीनों को गाड़ी में जोता जाता है। बैलों की बैलगाड़ी में, ऊँटों को ऊँटगाड़ी में और भैसों को भैंसागाड़ी में। उन पर उनकी शक्ति से ज्यादा भार लाद दिया जाता है। जब वे चल नहीं पाते हैं और गिर पड़ते हैं, तब पापी लोग उन्हें डंडों से मारते हैं। उन्हें दंडा मार-मार कर उठाया जाता है। पूजन चल रही है, सभी पूजन की लय में मस्त हैं। तभी बीच में ही एक व्यक्ति बोल उठता है-आज के आनन्द की जय । अरे भाई! सोटन की मार पड़ रही है, आँखों में से आँसुओं की धारा बह रही है, तो आनन्द कहाँ से आ रहा है? उसे पता नहीं कि मुँह से क्या बोल रहा है। वह तो लय में मस्त है। पर cu 225 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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