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________________ कोशिश करें। आप अपने घर के द्वार पर खड़े हैं, किसी से कुछ नहीं कहते। आप किसी मित्र को देखकर मुस्करा देते हैं। तो उसकी चाल जरा धीमी हो जाती है। वह सोचता है कि आप उसे बुला रहे हैं। वह पास में आता नहीं है, लेकिन धीरेधीरे चलते हुए, बार-बार पलटकर आपको देखने लगता है। एक मिनिट को रुक भी जाता है, लेकिन आपको मौन देखकर पुनः चलने लगता है। आप आवाज लगाकर, हाथ हिलाकर कहते हैं, भाई साहब! आइये। तब वह व्यक्ति अपनी दिशा को बदल देता है और आपके पास आकर खड़ा हो जाता है। आप कहते हैं कि चाय पीकर जाइये और घर में ले जाकर उसका स्वागत-सत्कार प्रारम्भ कर देते हैं। मित्र की ओर मुस्कराना यानि योग का स्पंदित होना, आस्रव तत्त्व का समर्थन करना है। एक मिनिट मित्र का रुकना, चला जाना, ईर्यापथ आस्रव है तथा हाथ के इशारे से उसे बुलाना और चाय पिलाना है स्थिति और अनुभाग बन्ध । आप जब भी यहाँ से गुजरें, अवश्य मिलकर जायें। यह मोह का समर्थन है। अब आप उससे बंध गये। सड़क पर खड़े होकर मुस्कराते नहीं तो वह मेहमान आता नहीं। आत्मा राग करता नहीं, तो बन्ध को प्राप्त नहीं होता। आप एकान्त में कितना मुस्करायें, आपके पास कोई नहीं आयेगा। किसी व्यक्ति को देखकर मुस्कुराये तो संबंध स्थापित हो जायेगा। मुस्कराने का अर्थ है कि मुझे आपसे राग है, प्रेम है, स्नेह है। लेकिन इतना अवश्य याद रखना, यह रागादि परिणाम कर्मोदय में ही होते हैं, कर्माभाव में रागादि भाव का होना त्रैकाल में भी संभव नहीं है। कर्मोदय में नियम से कर्म का बन्ध हो, ऐसा भी नियम नहीं है। भावमोह का अभाव होने पर कर्मोदय में बन्ध नहीं होता, जो कि निर्विकल्प समाधि में सम्भव है। परम पूज्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज का एक काव्य है, जो आत्मा की स्वतंत्रता और कर्म की परतन्त्रता का दिग्दर्शन करता है - तूने किया विगत में कुछ पुण्य-पाप, जो आ रहा उदय में स्वयमेव आप। होगा न बन्ध तब लों, जब लों न राग, w 217 a
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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