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________________ तब रोकना। सुगन्ध ने आकर्षित किया। यौवनी मदभरे आम ने मोहित किया, पीले रंग ने राजा को लुभाया। धीरे से राजा ने हाथ उठाया और आम नासा इन्द्रिय से लगा दिया और सूंघते सूंघते मन नहीं माना तो चूसना प्रारम्भ कर दिया। उसका रस लेने लगे। मंत्री ने मना किया तो राजा ने कहा- एक आम खाने से क्या होता है। डाक्टर तो हमेशा ऐसा ही कहते रहते हैं। मना करते-करते भी राजा ने आम का सेवन कर लिया। आम को खा लिया। एक-एक करके अनेक आम राजा के पेट में पहुँच गये। अग्नि में ईंधन डालो, वह तृप्त नहीं होती, मनुष्य का मन भी ऐसा ही है। आखिर राजा बीमार हुआ और कुछ समय उपरान्त मरण को प्राप्त हुआ। राजा के मन में पहले भाव पैदा हुआ। यह आस्रव तत्त्व का समर्थन हो गया, भावास्रव हो गया। उसके बाद उसे हाथ में लिया, उसका स्पर्श किया तो द्रव्यास्रव हो गया और उसे सूंघा तथा उसका सेवन किया, यह बन्ध हो गया। पहले भावास्रव होता है, बाद में द्रव्यास्रव, उसके बाद में बन्ध होता है। जब तक राजा ने आम नहीं देखा था, हाथों में नहीं आया था, तब तक खाने का कोई भाव नहीं था। जैसे ही आम आया, तो मन कहता है कि मात्र एक ही आम है। खा लो, क्या फर्क पड़ता है। यही सिद्धांत कर्मबन्धन में भी लागू होता है। जो पहले पूर्वकृत कर्म उदय में आते हैं और उनके उदय में राग-द्वेष-मोह उत्पन्न होता है तो निश्चित रूप से कर्म का बन्ध होता है अर्थात् पुद्गल वर्गणा का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह परम अवगाढ़ सम्बन्ध हो जाता है। बन्ध की यह परम्परा अनादिकालीन है। प्रत्येक समय कर्म उदय में आ रहे हैं, जा रहे हैं और बन्ध को प्राप्त हो रहे हैं। बन्ध के सम्बन्ध में कुन्दकुन्द आचार्य ने एक बात अच्छी कही है - अज्झव सिदेण बन्धो, सत्ते मोरहिंमा व मोरहिं। __एसो बंध समासो, जीवांणणिच्छयणयस्य ।। यह जीव किसी जीव को मारे या न मारे, लेकिन उसके मारने के भाव मात्र से ही बन्ध हो जाता है। वस्तु आपको उपलब्ध हो या नहीं, लेकिन उसके प्रति जो राग भाव है, वह नियम से बन्ध में कारण है। यह जीव जिस समय 0 2150
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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