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________________ आदेश दिया। थोड़े ही दिनों में कार्य सम्पन्न हो गया। अब सम्राट प्रसन्नचित्त होकर रहने लगा, क्योंकि चिंता का निवारण कर लिया था । यह कहानी हमारे जीवन की कहानी है । यदि भविष्य को उज्जवल बनाना हो तो वर्तमान को सार्थक एवं सुव्यवस्थित करना होगा। वर्तमान की शक्ति का सही उपयोग ही भविष्य को उज्जवल बनाता है । ज्ञानियों ने भी यही संदेश दिया है कि समय को जाननेवाला ही ज्ञानी है। समय के रहते हुए जिसने समय को पहचान लिया, वही व्यक्ति अवसर का लाभ उठा सकता है। जो मनुष्य जीवन रहते हुए करने योग्य कार्य कर लेता है, वही बुद्धिमान है। यदि वास्तव में आत्मकल्याण करना चाहते हो तो आस्रव - बन्ध के कारणों इन रागादिक भावों से बचो । श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी ने लिखा है - शान्ति के बाधक कारण रागादिक भावों को हेय समझने से शान्ति नहीं मिल सकती ! शान्ति तो तभी मिलेगी, जब उन बाधक कारणों को हटाया जायेगा । संसार के मूलकारण मोह, राग, द्वेष ही हैं । राग-द्वेष करने से नवीन कर्मों का आस्रव-बन्ध होता है। आचार्य पुष्पदन्तसागरजी महाराज ने बन्धतत्त्व का वर्णन करते हुये लिखा है - बन्ध तत्त्व है कह रहा, सुन ओ चेतन अन्ध । राग-द्वेषमय भाव से, होता विधि का बन्ध।। विषय भोग को त्यागकर, करो वीर का संग । ज्ञान-ध्यान में रत रहो, चढ़े न विधि का रंग ।। एक युवा सम्राट था। वह काफी समय से बीमार था। किसी डॉक्टर ने राजा को सलाह दी, बीमारी का उपचार बताया कि आप यदि आम न खाएँ, तो स्वस्थ हो सकते हैं। डाक्टर ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि, आप आम खाना ही मत। आम खाना तो बहुत दूर है, आम वृक्ष के पास से भी मत निकलना । यदि आपने आम को खा लिया, तो आप अपना मरण निश्चित समझो। जीवन तो सबको प्यारा होता है, भला जान बूझकर मरना कौन चाहेगा? आदमी सौ साल का होने के बाद भी और जीने की तमन्ना रखता है । भले ही वह कितना ही बीमार क्यों न हो, फिर भी जीने की तमन्ना तो बनी ही रहती है । राजा तो अभी U 213 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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