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________________ रगड़-रगड़ कर साफ करने लगा। परिश्रम करते-करते उसे पसीना आ गया, परन्तु मुख का वह काला दाग दर्पण में ज्यों-का-त्यों दीखता रहा। उस समय एक बुद्धिमान व्यक्ति ने उसका अभिप्राय समझ उसका हाथ पकड़कर उसके मुख के उस दाग वाले भाग पर रक्खा और कहा कि इसको रगड़। गाल के रगड़ने से जब वह दाग मिट गया, तब उसने कहा कि अब तू दर्पण में अपना मुख देख । उस समय जब मूर्ख ने अपना मुख दर्पण में देखा, तो उसे अपना मुख स्वच्छ दिखाई दिया। ___संसारी जीव की भी यही दशा है। वह जैसे कृत्य करता है, उसकी आत्मा पर उसी प्रकार का कर्म का धब्बा तत्काल लग जाया करता है। कुकृत्य का, बुरा कर्म का धब्बा भी उस पर लगता है और सुकृत्य का सुन्दर कर्म (शुभ कर्म) का धब्बा भी उसकी आत्मा पर लगता है। जब उन सुकर्मों का फलकाल आता है, तब उसे शुभ फल मिलता है, जिसे पाकर यह बहुत प्रसन्न होता है, चारों ओर इसे सुख-ही-सुख नजर आता है, यह समझ भी नहीं पाता कि संसार में कोई दुःखी भी है। और जब दुर्भाग्य से कुकर्म का कड़वा फल इसके सामने आता है, तब यह दुःखी होता है, रोता है, व्याकुल होता है, छटपटाता है, सारा संसार इसको दुःखमय नजर आता है। एक वृद्ध मनुष्य एक स्थान पर आम का एक पौधा लगा रहा था, उधर से होकर घोड़े पर सवार राजा निकला। राजा ने उस वृद्ध को आम का पौधा लगाते हुए देखकर पूछा कि बुड्ढे । यह क्या कर रहा है? बुड्ढे ने उत्तर दिया कि राजन् । आम का पौधा लगा रहा हूँ, जिससे आम का फलदार तथा छायादार ऊँचा वृक्ष उत्पन्न होगा। राजा ने पूछा कि क्या तुझे आशा है कि यह पौधा जब फल देने योग्य वृक्ष बनेगा तब तक तू जीवित रहेगा? बूढ़े ने नम्रता के साथ उत्तर दिया कि महाराज । मैं तो इस वृक्ष के मधुर फलों को न खा सकूँगा, किन्तु मेरे पुत्र-पौत्र तथा आगामी पीढ़ी के अन्य मनुष्य तो इसके फल अवश्य खायेंगे। राजा उस बूढ़े की शुभ भावना से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसको 50 ____0_2070
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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