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________________ अपूर्व परिवर्तन होना प्रारंभ हो गया। विष खा लेने के कारण अपनी मृत्यु निकट समझकर अपने मित्रों से अन्तिम विदा लेने के लिये बाजार में से जा रहा था कि मार्ग में उस वैद्य की दुकान फिर पड़ी। वैद्य ने फिर उसको देखा और देखते ही दुकान पर बैठे हुए अपने साथी से कहा कि यह मनुष्य अब मर्द बन गया है, इसकी नपुंसकता दूर हो गई है। वैद्य की बात सुनकर उस साथी को भी आश्चर्य हुआ और उस नपुंसक को भी। नपुंसक ने सोचा कि वैद्य ने यह बात ऊँटपटाँग कही है। इसको पता नहीं कि मैंने विष खा लिया है, मैं अब मृत्यु के मुख में जाने वाला हूँ। __ वह अपने समस्त मित्रों से मिलकर घर आया। कई घंटे बीत जाने पर भी उसको अपने शरीर में विष का प्रभाव कुछ भी अनुभव नहीं हुआ, बल्कि इसके विपरीत उसे शरीर में स्फूर्ति अनुभव हुई, उसे वैद्य की दूसरी बात चित्त में घूमने लगी। रात्रि हुई, अपनी स्त्री के साथ एक शैया पर सोया। उसी समय अपनी पत्नी का शरीर छते ही उसका काम-पौरुष जागत हो गया। इससे उसको तथा उसकी स्त्री को बहुत हर्ष हुआ। तब उसने वैद्य की दोनों समय की बातें और अपने विष खाने की बात उसे (स्त्री को) कह सुनाई। दोनों बहुत प्रसन्न हुए। ____ कुछ दिनों बाद उसकी स्त्री को गर्भाधान हुआ और नौ मास पीछे सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। उन दोनों के हर्ष का पारावार न था। तदनन्तर उसके 2-3 सन्तान और भी हुईं। इस तरह वह विष भी उसके लिये वरदान सिद्ध हो गया, उसका जीवन भर का असह्य दुर्भाग्य सदा के लिये सौभाग्य में परिवर्तित हो गया। ____ व्यवहार में संसारी प्राणी लक्ष्मी, पुत्र स्त्री के समागम, रोग, विपत्ति, अपयश, चिन्ता, व्याकुलता आदि के उपशम हो जाने को सौभाग्य समझते हैं, परन्तु पारमार्थिक दृष्टि से सौभाग्य इन बातों को नहीं माना जाता, क्योंकि इस सामग्री के समागम में जीव कर्मों का बंध करता रहता है। संसार के मोह-मायाजाल में फँसा हुआ आत्मा का अहित किया करता है। उससे आत्मा का अभ्युदय नहीं होता। श्री समन्तभद्राचार्य ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में कहा है - 0 203_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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