SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधन स्वयं हमने हँसकर स्वीकार किये हैं। महाराज जी से एक युवक ने आकर पूछा कि स्वतंत्रता का उपाय क्या है, मोक्ष का उपाय क्या है ? महाराज ने उससे पूछा कि तुम्हें बांधा किसने है? वह युवक एक क्षण को रुका, फिर बोला, कि बाँधा तो स्वयं के मोह ने है। तब उन्होंने पूछा कि फिर उपाय क्यो पूछते हो? बस, मोह को छोड़ दो तो बंधनमुक्त हो जाओगे। मोह का अभाव ही तो मोक्ष है। जो बंधन तुमने ईर्ष्यावश, रागवश, मोहवश, द्वेषवश स्वयं पर डाल लिये हैं, अब उनके प्रति जागो। जो मिथ्या संस्कार हैं, उन्हें बदलने की फिक्र करो। सम्यक् आचारण के पीछे दौड़ो। जो आत्मा वर्तमान में बंधन में हैं, उसकी चिन्ता करो। उसके बंधनमुक्त होने का उपाय है सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र को अपनाना, उसमय अपना जीवन बनाना। कर्म किसी को नहीं छोड़ते। कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है। अतः अब तो कर्मो की कठपुतली मत बनो। कर्मों के अधीन होकर तो पता नहीं यह आत्मा कितने अनन्त भवों से दर-दर भटक रही है। सूर्यवंशी अयोध्या के क्षत्रिय राजा दशरथ के पराक्रमी पुत्र राम को दूसरे दिन प्रातः शुभ मुहूर्त में राज्याभिषेक होकर राज अधिकार मिलना था। इस राज उत्सव की समस्त तैयारियाँ हो चुकी थीं। समस्त राज परिवार तथा अयोध्या की समस्त जनता रामचन्द्र के राजा बनने के लिये प्रसन्न थी, क्योंकि राम सर्वगुण सम्पन्न ज्येष्ठ राजपुत्र थे। दशरथ राजभार से मुक्त होकर आत्मसाधना में लगना चाहते थे। सारा अयोध्या नगर हर्ष में विभोर हो रहा था, किन्तु अशुभ कर्म के उदय से सुबह होते ही उन्हें 14 वर्ष के लिये वन में जाना पड़ा। महान पराक्रमी, तद्भव मोक्षगामी हनुमान की माता, राजा महेन्द्र की पुत्री अंजना ने विवाह के पश्चात अपने नवयौवन की बेला में कुछ एक दिन, मास या वर्षों का ही नहीं अपितु 22 वर्ष का दीर्घकालीन पतिवियोग का असह्य दुःख सहन किया। सदाचारी, स्वस्थ, बुद्धिमान, सुन्दर तरुण पति के रहते हुए भी निरपराधिनी सती सुन्दरी अंजना अनाथिनी-सी दीन-दुःखिनी बनी रही। 22 वर्ष तक राजभवन के एकान्त कक्ष में रात दिन आँसू बहाती रही, एक दिन भी 0 1960
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy