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________________ करता है। अपने अपराध को स्वीकार करने तक का साहस जिसमें नहीं है, वह व्यक्ति कभी यह नहीं विचारता कि क्या इस प्रकार तुझे शान्ति मिलनी संभव है? नहीं, अब विपरीत बुद्धि को छोड़कर अपने अपराध को स्वीकार करो और इन आस्रव के कारणों को छोड़कर संवर तथा निर्जरा द्वारा समस्त कर्मों को नष्ट कर दो। आचार्यों ने करुणा करके हमें संसार के दुःखों से छूटने का उपाय बताया है, पर हमनें उसकी उपेक्षा कर दी। एक बार एक यात्री ट्रेन से सफर कर रह था। उसके पेट मे भयंकर दर्द हुआ और वह तड़फने लगा, तब सामने बैठे यात्री ने अपनी जेब से एक पुड़िया निकाली और कहा-भैया! यदि यह दवाई खाओगे तो तुम्हारा दर्द ठीक हो सकता है। तब उसने कहा कि-तुम-जैसे बहुत देखे हैं। मैं सारे हिन्दुस्तान का चक्कर काट चुका हूँ, अनेक बड़े-बड़े डाक्टरों को दिखाया है, परन्तु कोई भी मेरा पेटदर्द ठीक नहीं कर पाया और तुम..... । इसने कहा-भैया! इसमें क्या तकलीफ है? मैं तुमसे पैसा तो माँग नहीं रहा हूँ। मुफ्त की पुड़िया है, खाकर देख लो। ठीक हो जायेगा तो अच्छा है, नहीं हुआ तो न सही। ऐसा कहते हुये उसने वह पुड़िया उसके हाथ में जबरदस्ती रख दी। उसने अरुचिपूर्वक ले तो ली, लेकिन धीरे-से वहीं छोड़ दी, वह नीचे गिर गई। बहुत देर तक वह पुड़िया वहीं नीचे पड़ी रही। जिसने पुड़िया दी थी, वह ट्रेन से अगले स्टेशन पर उतर गया। उसके बाद जब उसे बहुत दर्द हुआ और कोई इलाज नहीं दिखा, तो उसके मन में आया कि इस पुड़िया को खाकर देखू। तब उसने वह पुड़िया खायी और सचमुच पाँच मिनट में दर्द ऐसा गायब हुआ कि जैसे गधे के सिर से सींग गायब हो गया हो । अब वह आदमी सामने नहीं है, उससे पूछाँ भी नहीं था कि वह कौन से गाँव का है और क्या नाम है? न मालूम पुड़िया में क्या था, कैसी दवाई थी? कुछ पता नहीं। अब उसको उस दवाई पर पक्की श्रद्धा हो गई, क्योंकि अब वह उसका अनुभव कर चुका है, अतः अब उस देने वाले की तलाश करता है। समाचार 0 1800
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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