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________________ । आसव तत्त्व SH मन, वचन और काय की हलन-चलनरूप क्रिया को आस्रव कहते हैं। उसके मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद और योग ये पाँच भेद हैं। राग-द्वेष आदि भावों के कारण पुद्गल कर्मों का खिंचकर आत्मा की ओर आना 'आस्रव' कहलाता है। __जैसे किसी नाव में छेद हो जाने पर पानी आने लगता है, वैसे ही आत्मा के शुभ-अशुभ भाव होने पर पुद्गल कर्म खिंचकर आत्मा की ओर आते हैं। अथवा जिस प्रकार गरम लोहा पानी को खींच लेता है, उसी प्रकार जीव अपने योग और भावों द्वारा कर्मों को अपनी ओर खींच लेता है, वही आस्रव है। आस्रव के 57 कारण हैं-5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, 25 कषाय और 15 योग । सात तत्त्व या आत्मस्वरूप का मिथ्या श्रद्धान होना मिथ्यादर्शन कहलाता है। 2. मिथ्यात्व के 5 भेद हैं - 1. एकान्त - द्रव्यों में अनेक स्वभाव हैं, उनमें से एक ही स्वभाव है' ऐसी हठ पकड़ना। विपरीत - जिसमें धर्म नहीं हो सकता, उसको धर्म मान लेना विपरीत मिथ्यात्व है। विनय - सुतत्त्व व कुतत्त्व को समान मानकर दोनों का एकसमान आदर करना। 4. संशय – सुतत्त्व व कुतत्त्व में संशय रखना। 5. अज्ञान – तत्त्वों को जानने की चेष्टा न करके देखा-देखी किसी भी तत्त्व 0 1750
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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