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________________ निकाल लूँगी तो पहचानेगा भी कौन? थोड़े समय की ही तो बात है। अतः उसने कहा-मैं स्वयं हुक्का उठाकर आपकी पीछे-पीछे बगीचे में चलती हूँ। बीरबल बगीचे की ओर चल पड़ा और उसके पीछे-पीछे बेगम सिर पर हुक्का उठाये चलने लगी। पसीने से उसका हाल-बेहाल हो रहा था। बगीचे में पहुँचकर बेगम ने चूँघट उठा लिया। सामने से बादशाह अकबर आ रहे थे। वे बेगम को इस स्थिति में देख आग-बबूला हो गए। दूसरे ही क्षण बीरबल ने कहा-हे महाबली! ये आपके ही प्रश्न का उत्तर है, स्वार्थ की बदौलत ही आज बेगम का ये हाल है। बादशाह अकबर को जब सत्य का पता लगा तब बेगम मलिका का सिर लज्जा एवं अपराध बोध से झुक गया। बहिरात्मा जीव परद्रव्यों से भिन्न अपनी आत्मा को नहीं पहचानता और इस स्वार्थी संसार में ही सुख ढूँढ़ता रहता है तथा अपनी दुर्लभ मनुष्य पर्याय को व्यर्थ में ही समाप्त कर देता है। यह विश्व जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्यों से बना है। यह अनादि अनिधन है। ये द्रव्य किसी के द्वारा बनाये गये नहीं हैं। इनका संचालन किसी शक्ति या पदार्थ से नहीं होता, अपितु प्रत्येक द्रव्य अपने उत्पाद-व्यय-घ्रौव्य लक्षण वाले स्वभाव से स्वयं अपना परिणमन करते हैं। यह सारी लोकव्यवस्था इन छहों द्रव्यों के ही आश्रित है। किनहू न करै न धरै को, षद्रव्यमयी न हरै को। सो लोक माहिं बिन समता, दुःख सहै जीव नित भ्रमता।। इस षद्रव्यमयी लोक का कोई कर्ता-धर्ता नहीं। इसमें समता के अभाव में यह जीव सदैव भ्रमण करता हुआ दुःख ही सहन कर रहा है। अपने ज्ञान, ध्यान के लिये इन छ: द्रव्यों का परिज्ञान करना आवश्यक है। इन सब परपदार्थों में हमारा जो मोह, राग, द्वेष लगा हुआ है वह अहितरूप है, दुःखरूप है। यह संसारप्रसंग केवल झंझट है। जब तक यह झंझट है, तब तक निजरस का स्वाद न आयेगा। ‘दोय काम नहिं होय सयाने, विषय भोग अरु मोक्ष में जाने ।' राग भी रहे, तृष्णा भी रहे, बाहरी पदार्थों को देखकर खुश भी होते रहें, 0 173_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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