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________________ अजीव तत्त्व पंडित श्री दौलतराम जी ने छहढाला ग्रंथ में अजीव तत्व का वर्णन करते हुये लिखा है चेतनता बिन सो अजीव हैं, पंच भेद ताके हैं, पुद्गल पंच वरन रस गंध दो, फरस वसू जाके हैं। जिय पुद्गल को चलन सहाई, धर्मद्रव्य अनुरूपी, तिष्ठत होय अधर्म सहाई, जिन बिन मूर्ति निरूपी ।। 7।। सकल द्रव्य को वास जास में, सो आकाश पिछानो, नियत वर्तना निशि-दिन सो, व्यवहार काल परिमानो । अजीव तत्त्व वह है जो चेतना से रहित है। इसके 5 भेद हैं पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण हो उसे पुद्गल द्रव्य कहते | वर्ण 5, रस 5, गंध 2 और स्पर्श 8 होते हैं। - धर्मद्रव्य अमूर्तिक है, वह जीव और पुद्गल को चलने में सहायक होता है । अधर्म द्रव्य भी अमूर्तिक है, वह जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक है I ऐसा जिनेन्द्र भगवान का उपदेश है। आकाश द्रव्य वह है जिसमें सब द्रव्यों का निवास है। काल द्रव्य दो प्रकार का है, निश्चय काल और व्यवहार काल। जो सब द्रव्यों के परिणमन या परिवर्तन में सहायक है, वह निश्चय काल है । जो रात-दिन, घड़ी-घंटा आदि रूप में जाना या कहा जाता है, वह व्यवहार काल I 1. पुद्गल द्रव्य अजीव द्रव्य दो प्रकार के होते हैं, एक मूर्तिक और दूसरे अमूर्तिक। जो इन्द्रियों से जाना - देखा जा सके, वह मूर्तिक है, जैसे ईंट, जल, पत्थर, वायु आदि सर्व दृष्ट-जगत मूर्तिक है। जो इन्द्रियों से जाना न जा 1572
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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