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________________ सम्राट बोला-मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि मैं किस बेटे के लिये रोऊँ? उन दस बेटों के लिये रोऊँ, जो अभी सपने में थे और तुम्हारे रोने से वे सब समाप्त हो गये या इस बेटे के लिये रोऊँ, जो सामने पड़ा है। मुझे हँसी इसलिये आ गई कि मैं सोच रहा हूँ कि कहीं दोनों ही तो सपने नहीं हैं? अभी तक तो जो नींद में देख रहा था, उसे सत्य मान रहा था, पर आँख खुली तो पता चला कि वह तो कोरा सपना था। और अब आँख खुली तो जो देख रहा हूँ, कहीं यह भी तो सपना नहीं है? क्योंकि यह सब भी छूट जाने वाला है। आचार्य यही समझा रहे हैं कि यह भी सपना है। विशेषता केवल इतनी-सी है कि यह खुली आँख का सपना है। जब तक आँख खुली है तब तक है, आँख मूंदी, मृत्यु हुई कि सपना समाप्त। जो अपना मानों सो सपना, निंदिया नसत नसावै । महल अटारी हाट-हवेली, कुछ भी संग न जावे।। बहिरात्मा जीव परपदार्थों में ममत्वबुद्धि रखता है, इसलिये उसे बेहोशी का नशा-जाल छाया रहता है। पर जैसे ही परपदार्थों से अपनत्व-बुद्धि दूर होती है, उसको आनन्द की लहर आने लगती है। संसार में अनन्त जीव हैं। वे सभी जीव सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। पर हमें दुःख क्यों है और वह कैसे दूर हो? इसकी उनको खबर नहीं है। इसलिये सुख के लिये वे झूठी कल्पना करते हैं कि रूपयों में से सुख ले लूँ, अच्छे शरीर में से या महल में से सुख ले लूँ, विषय-भोगों में से सुख ले लूँ। ऐसी धारणा वाले जीवों की दशा उस शराबी के समान है जो नशे के कारण कहीं रास्ते में पड़ा रहता है, फिर भी अपने को सुखी मानता है। उसी प्रकार अज्ञान के कारण यह जीव शरीर, स्त्री, पुत्र, धन-वैभव आदि परद्रव्यों को अपना मानता हुआ उसमें राग करके खुश होता है। उसको वेदन तो राग की आकुलता का होता है, किन्तु अज्ञान के कारण ऐसा मानता है कि मैं सुख का अनुभव कर रहा इस जीव ने अनादिकाल से मोहरूपी महामद को पी रखा है, इसलिये अपनी आत्मा को भूलकर व्यर्थ ही संसार में दुःखी हो रहा है। श्रीमद् राजचन्द्र 0 138
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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