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________________ लघु विद्यानुवाद ६२५ ॐ ह्रीं क्रौ स्वर्ण सुवर्णवर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहनवधू चिन्ह सपरिवार इन्द्रदेव श्रागच्छा प्रगच्छेत्यादि इन्द्रार्चनम ||३६|| एव लघ पीठेषु दशदिक्पाल पूजा करे ।। ३६ ।। ततः ॐ ह्रीं स्थालिपाक सुपहमि स्वाहा । पुष्पाक्षतैरुपहार्य स्थाली पाक ग्रहरणम ||३७|| इसके बाद "ॐ ह्री स्थालिपाक मुपयामि स्वाहा' यह पढकर पुष्प अक्षतो से भरकर स्थालि पाक को अपने पास रखे ||३७|| ॐ ह्रीं होम द्रब्य मादधामि स्वाहा । || होम द्रव्याधानम् ।।३६।। इसे पढकर होम द्रव्य अपने पास रखे । ॐ ह्रीं श्राज्यपात्रस्थापनम् ||४०|| यह पढकर होम करने के घी को अपने पास रखे स्थापन करे ||४० ॥ ॐ ह्रीं स्वमुपस्करोमि स्वाहा ।। स्रुववस्तापनं मार्गानं जलंसेचन पुनस्तापनमग्रे निधापनं च ॥४१॥ यह मन्त्र पढकर स्त्रुक (सूची) अर्थात् घी होमणे के पात्र का सस्कार इस प्रकार करे कि प्रथम उसे अग्नि पर तपावे, सेके इसके बाद उसे पौछे, इसके बाद उस पर जल सीचे, पुन अग्नि पर तपावे और अपने सामने रखे ||४१|| ॐ ह्रीं स्रुमुपस्करोमि स्वाहा || स्रूपस्थापनं तथा ॥ ४२ ॥ यह मन्त्र बोलकर स्त्रुव अर्थात् होम सामग्री को होमने के पात्र की सूची की तरह सस्कार करे, स्थापना करे ॥४२॥ ॐ ह्रीं प्राज्यामुद्वासयामि स्वाहा ॥ दर्भपिण्डोज्वलेन श्राज्यस्यो द्वासन मुत्पाचनमवेक्षरगंम च ॥४३॥ यह मन्त्र पढकर घी को तपावे वह इस तरह कि दर्भ के पूले को जलाकर घी को उठावे उत्पाचन (तपावे) और प्रवेक्षण (देखे) करे ||४३|| ॐ श्रीं पवित्रतर जलेन द्रव्यशुद्धि करोमि स्वाहा होम द्रव्यं प्रोक्षरणम ॥ ४४ ॥ यह मन्त्र पढकर द्रव्य शुद्धि करे ||४४ ||
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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