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________________ लघुविद्यानुवाद तक ब्रह्मचर्य व्रत रखे मन्त्र की जाप्य पुष्प हस्त और मल आदि शुभ नक्षत्रो मे प्रारम्भ करना चाहिये। सुबह दोपहर और शाम को जाप्य करे। सुबह ५ बजे उठकर स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र पहन कर जाप्य दे। श्वेत वस्त्र पहने। यदि घर मे जाप्य करनी हो तो भगवान का दर्शन-पूजन करने के पश्चात् करनी चाहिए। दोपहर को शुद्ध वस्त्र पहनकर तथा सध्या को मन्दिर मे दर्शन करने के पश्चात् शुद्ध वस्त्र पहनकर जाप्य करे। जाप्य तीन प्रकार का होता है। मानसिक, वाचनिक (उपाशुक) और कायिक । मानसिक जाप :-मन मे मन्त्र का जप करना, यह कार्य सिद्धि के लिए होता है। । वाचनिक जप -उच्च स्वर मे मन्त्र पढना, यह पुत्र प्राप्ति के लिए होता है। कायिक जप –बिना बोले मन्त्र पढना, जिसमे होठ हिलते रहे। यह धन प्राप्ति के लिए होता है या किया जाता है। इन तीनो जाप्यो मे मानसिक जाप्य श्रेष्ठ है, जाप उगलियो पर या माला द्वारा करना चाहिये । माला चाहे सूत को या स्फटिक, सोना, चाँदी या मोती आदि को हो। विश्व शान्ति के लिए आठ करोड़ आठ लाख आठ हजार आठ सौ आठ जप करे । कम से कम सात लाख जप करे। यह जाप नियमबद्ध होकर निरन्तर करे, सूतक पातक मे भी छोडे नहीं । विश्व शान्ति जाप के लिए दिनो का प्रमाण कर लेना चाहिए। पुत्र प्राप्ति, नवग्रह शान्ति, रोग निवारण प्रादि कार्यो के लिए एक लाख जाप करे। यात्मिक शान्ति के लिए सदा जाप करे। दिनो का कोई नियम नही है, स्त्रियो को रजस्वला होने पर भी जाप करते रहना चाहिए, स्नान करने के पश्चात् मन्त्र का जाप्य मन मे करे, जोर से नहीं बोले और माला भी काम मे न ले। जप पूर्ण होने पर भगवान का अभिषेक करके यथाशक्ति दान पुण्य करे। प्रासन-विधान बॉस की चटाई पर बैठकर जाप करने से दरिद्र हो जाता है, पाषाण पर बैठकर जाप करने से व्याधि पीडित हो जाता है। भूमि पर जाप्य करने से दु.ख प्राप्त होता है, पट्ट पर बैठकर जाप करने से दूर्भाग्य प्राप्त होता है, घास की चटाई पर बैठकर जाप करने से अपयश प्राप्त होता है, पत्तो के आसन पर बैठकर जाप करने से भ्रम हो जाता है, कथरी कर बैठकर जाप करने से मन चचल होता है, चमडे पर बैठकर जाप करने से ज्ञान नष्ट हो जाता है, कबल पर बैठकर जाप करने से मान भग हो जाता है। नी ने रग के वस्त्र पहनकर जाप करने से बहुत दुख होता है। हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से मान भग हो जाता है।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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