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________________ चतुर्थाधिकार प्रत्येक तीर्थ कर के काल में उत्पन्न शासन ___ रक्षक यक्ष यक्षिणी के चित्र सहित स्वरूप व होम विधान (१) श्री आदिनाथ जी (बैल का चिन्ह) गौ मुख यक्ष-स्वर्ण के ममान, कान्ति वाला, गो मुख सदृश वाला, वृषभ वाहन वाला, मस्तक पर धर्म चक्र, चार भुजा वाला, ऊपर के दाहिने हाथ मे माला, बाएं हाथ मे फरसा तथा नीचे वाले दाहिने हाथ मे वरदान, बाएं हाथ मे विजौरे का फल धारण करने वाला होता है। (चित्र न० १) __ "चक्नेश्वरी यक्षिणी" (अप्रतिहत चक्र) -स्वर्ण के जैसे वर्ण वाली, कमल पर बैठी हुई गरुड की सवारी, १२ भुजा वाली, दोनो हाथो मे दो वज्र, दो तरफ के चार चार हाथो मे पाठ चक्र, नीचे के दाहिने हाथ मे वरदान धारण करने वाली, नीचे के बाएं हाथ मे फल । प्रकारान्तर से चार भुजा वाली भी मानी है। ऊपर के हाथो मे चक्र, नीचे के बाएं हाथ मे विजोरा, दाहिने हाथ मे वरदान धारण करने वाली है। क्षेत्रपाल ४ जय, विजय, अपराजित, मरिण भद्र । (चित्र न० २) (२) श्री अजितनाथजी (हाथी का चिन्ह) "महायक्ष"-जिन शासम देव-स्वर्ण सी काति वाला, गज की सवारी चार मुख व आठ भुजा वाला है। बाऐ चारो हाथो मे चक्र, त्रिशूल, कमल और अकुश तथा दाहिने चारो हाथो में तलवार, दडं, फरसा और वरदान धारण करने वाला है । (चित्र न० ३) ___"रोहणि यक्षिणी" स्वर्ण समान काति वाली, लोहासन पर बैठने वाली चार भुजा वाली हाथो मे शख, चन्द्र, अभय और वरदान युक्त है। (चित्र न० ४) - -
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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