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________________ लघुविद्यानुवाद ५७६ ___ लक्ष्मी इद यन्त्रम् । विधि .-दीप मालिकाया कृष्ण चतुर्दश्या षष्ठ व्रतः तप कृत्वा पवित्री भूत्वा अष्टगन्ध केन अगुरु धूपोत्क्षेपण पूर्वक सदृश पीताम्बर परिधाय स्वर्ण लेखिन्या लिखनीयम् । तत षट्कोर्णक कुण्ड कृत्वा अष्टोत्तर शत सख्येयनालीकेर पू गीलवग जाती फल, एलादिक, पञ्चामृतं सार्द्ध पञ्च पञ्च सेर सख्याक अग्नौजुहुयात् । इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर विधिवत् पूजा करने से और यन्त्र पास मे रखने से मन चितित सर्व कार्य की सिद्धि होती है। शरीर निरोग रहता है। परकृत दुष्ट विद्या का परकोप नही होता। डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेत, व्यतरादिक की पीडा शात होती है । लक्ष्मी का लाभ होता है ।। ५८ ।। ज्वर नाशक यन्त्र नं० ५९ नाही हा स्वा असाहन्नौँझ्वाँ इस यन्त्र को लिखकर गर्म पानी मे डालकर रखने से, शीत ज्वर शात होता है । ठण्डे पानी मे डालकर रखने से उष्ण ज्वर शात होता है । ५६ ।। नोट -जहा बीच मे देवदत्त लिखा है, उस जगह 'स' लिखकर फिर बीच मे देवदत्त लिखे ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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