SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 558
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघुविद्यानुवाद ४६७ इस यन्त्र की लाल पुष्पो से पूजा करे तो, मणि वाले सर्प का भी क्षोभरण होता है, सावन करने वाले के हित के लिये चन्द्र सूर्य को भी विचलित करने वाली, शक्तिशाली हे देवो मेरी रक्षा करो ।।११।। "षट्कोणे" २५ श्लोक नं० १० विधि नं० ३ IMa - to ॐ ही पनांती देवता 1.चॐनित्ये ॐ किन्ने ॐार - CLOPARD हाँ ॐर रंॐ रं रं रं रंॐ ॐ हीं पद्मावती देवता ? भयनाता सकलसूख दायना। ४० ॐ ह्रौँ पद्मावती देवता, ॐरं रं रं रंॐ रं रं₹₹ॐ" पश्चिम हो का 18 उत्तर सर्वलोक वशीकरण यन्त्र काव्य नं० ११ पत्र रचना - षट् दल कमल कृत्वा 4 बीज मध्ये स्थापयेत षटक्षरै ह स क्ली को झा ही बोजाक्षरैन वेष्टयेत आ झो ह्री श्री पद्म एतत् अक्षरेन षट् दल कमल मध्ये लिखेत। तदुपरि पोडग
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy