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________________ १९८५ का वर्षायोग श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र लगवा (राजस्थान) मे किया। समिति ने इस अवसर पर अष्टम पुष्प के रूप मे "श्री सम्मेदशिखर माहात्म्यम्" ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर आचार्य श्रो के करकमलो द्वारा दिनाक १४-७-८५ को विशाल जन-समुदाय के बीच विमोचन किया। श्री सम्मेद शिखर माहात्म्यम् ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। श्री सम्मेदशिखर जी के महत्व पर प्रकाश डालने वाला इस प्रकार के ग्रन्थ का प्रकाशन आज तक नही हुआ है। इस ग्रन्थ मे २४ तीर्थकरो के चित्र, प्रत्येक कूट का चित्र, अर्थ व उसका फल प्रकाशित किया गया है। संसार मे सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र जैसा कोई क्षेत्र नहीं है । क्योकि यह तोर्थराज अनादिकाल का है और इस सिद्धक्षेत्र से हमारे २४ तीर्थकरो मे से २० तीर्थकर मोक्ष पधारे है और उनके साथ-साथ असख्यात मुनिराज मोक्ष पधारे है । इसलिये इस क्षेत्र का कण-करण पूजनीय व वदनीय है। इस क्षेत्र की वदना करने से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापो का क्षय हो जाता है और उसके लिए मोक्षमार्ग आसान हो जाता है तथा उसे नरक व पशुगति मे जन्म नहीं लेना पडता और वह ४६ वे भव मे निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति करता है। कहा भी है .. भाव सहित बंदे जो कोई । ताहि नरक पशुगति नहीं होई ॥ इस प्रकार इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने से अनेक भव्यात्माओ ने इस ग्रन्थ को पढ़कर सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र की यात्रा कर धर्म लाभ प्राप्त किया है और कर रहे है । है. पनि A ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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