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________________ २६८ हुआ करता है और जिस प्रकार से हो सके पीडा मिटाने का उपाय किये जाते है, और घर के सव लोग ऐसा अनुमान करते है कि किसी की दृष्टि लगने से या भय से अथवा चमकते यह पीडा हो गयी है । इस तरह की पीडा दूर करने मे यह यत्र सहायक होता है । जब यत्र तैयार करना हो तब भोजपत्र अथवा कागज पर यक्ष कर्दम से अनार की कलम लेकर लिखना चाहिये। जब यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे से सात अथवा नौ आटे देकर मादलिये मे रख गले मे या हाथ मे बाँधने से पीडा मिट जाती है। आपत्ति चिता का नाश हो जाता है । बालक आराम पाता है। नित्य इष्टदेव के स्मरण को नही भूलना चाहिये ||१७|| नजर दृष्टि चौबीसा यन्त्र ॥ १८ ॥ बालक को दृष्टि दोष हो जाता है । तब दूध पीने या कुछ खाते समय अरुचि हो जाने से वमन हो जाता है । पाचन शक्ति कम हो जाने से मुखाकृति रक्त रहित दिखने लगती है । इस तरह ७ लघुविद्यानुवाद १२ ५ यन्त्र नं० १८ ६ ८ १० ११ ४ ह को हालत हो जाने से घर मे सबको चिंता हो जाती है । इस तरह परिस्थिति में चौवीसा यंत्र भोजपत्र अथवा कागज पर अनार की कलम लेकर यक्ष कर्दम से लिखना चाहिये और मादलिये में रख गले मे या हाथ पर बाघना और जिस मनुष्य का या स्त्री की दृष्टि की दृष्टि दोष हुआ हो 'तो केवल इतना ही उसका नाम देकर दृष्टि दोष निवारणार्थ लिखना चाहिये यदि नाम स्मरण न लिखना कि दृष्टि दोष निवारणार्थ यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे मे आटे देकर यत्र के पास मे रखे या गले पर या हाथ पर बांधे तो दृष्टि दोष दूर हो जाता है ||१८||
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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