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________________ लघुविद्यानुवाद कि सबसे छोटा या कम गिनती वाला अक किस खाने मे है । और जिस खाने मे हो उसी खाने से लिखना शुरू किया जाय और वृद्धि वाले अंक से लिखते जाओ। जैसे यत्र मे सबसे छोटा अक पजा है तो पाच का अक जिस खाने मे है उसी खाने से लिखने को शरूपात करो और बाद मे वद्धि पाते हुए याने छ सात, आठ, जो भी सख्या लिखे हुए की पहली अधिक हो उसे लिखते हुए यत्र पूरा लिख लो। ऐसा कभी मृत करना कि यत्र के खाने अकित किए बाद प्रथम के खाने मे जो अक हो उसे लिखकर बाद मे जो खाने है उनमे लाइन सिर लिखते जानो। यदि इस तरह से यन्त्र लिखा गया हो तो वह यन्त्र लाभ नही पहुचा सकेगा। इसलिए यन्त्र लिखने की कला बरावर सीख, लेनी चाहिए और लिखते, समय बराबर सावधानी से लिखना योग्य है। “यत्रो की योजना" यन्त्र मे जो विविध प्रकार के खाने होते है जिसमे से कई यन्त्र तो ऐसे होते है कि जिनमे लिखे अको को किसी भी तरह स गिनते हए अन्त की सख्या एक हो प्रकार की आवेगो। बहधा इस प्रकार के यन्त्र आप देखेंगे इस तरह की योजना से यह समझ मे ग्राता है कि यन्त्र अपने बल की प्रत्येक दिशा मे एकता रखता है और दिशा मे भी निज प्रभाव को कम नही होने देता ॥ यत्रो मे भिन्न भिन्न प्रकार के खाने होते है, और वह भो प्रमाणित रूप से व अको से अकित होते है । जिस प्रकार प्रत्येक अक निज बल को पिछले अक मे मिला दश गुना बढा देता है। तदनुसार यह योजना भी यन्त्र शक्ति को बढाने के हेतु की गयी, समझना चाहिये । जिन यन्त्रो मे विशेष खाने हो और उन खानो मे अकित किए हुए अको को किधर से भी मिलान करने से एक ही योग की गिनती आती हो तो इस तरह के यन्त्र अन्य हेत से समझना चाहिए और ऐसे यन्त्रो का योगाक करने की भी आवश्यकता नही होती है। ऐसे यत्र इस तरह देवो से अधिष्ठित होते है कि जिनको प्रभाव बलिष्ट होता है-जैसे भक्तामर आदि के यन्त्र है। इसलिए जिन यन्त्रो मे योगाक एक मिलता हो उनके प्रभाव मे या लाभ प्राप्ति के लिए शका करने की आवश्यकता नहीं है ।। यन्त्र लेखन विगन ।।।। यन्त्र लिखने बैठे तब यदि यन्त्र के साथ विधान लिखा हुआ मिलेगा तो उस पर ध्यान देना चाहिए और खासकर यन्त्र लिखते मौन रहता उचित है। सुखासन से आसन पर बैठना सामने छोटा बडा पाटिया या बाजोठ हो तो उस पर रखकर लिखना परन्तु निज के घुटने पर रखकर कभी न लिखना चाहिए। क्योकि नाभि के नीचे का अग ऐसे कार्यो में उपयोगी नही माना है। प्रत्येक यन्त्र के लिखते समय धूप, दीप आदि अवश्य रखना चाहिए और यन्त्र विधान मे जिस दिशा की तरफ मुख करके लिखना बताया हो देख लेवे। यदि न लिखा मिले तो सुखसम्पदा प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा की तरफ और सकट-कष्ट, आधि-व्याधि के मिटाने को उत्तर
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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