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________________ अपवाद किया, लेकिन परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज के हम बहुत-बहुत कृतज्ञ है कि उन्होने बहुत ही धैर्य के साथ सभो अपवादो को सहन किया और फिर भी जन-भावना को ध्यान में रखते हुए पुन इस न थ का सशोधन कार्य किया और साथ ही इस कृति से सभी अपवादजनक सामग्री को भी अलग कर दिया है जिसे पकडकर लोगो को अपवाद करने का मौका मिल रहा था। यह ग्रथराज अब पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण ग्रथ सिद्ध होगा क्योकि इस ग्रथराज मे वीरनन्दि आचार्यकृत पद्मावती स्तोत्र व उस स्तोत्र पर लिखी हुई अाठ श्लोको पर 'वृत्याष्टक' नाम की टीका श्री पार्श्वनाथ देव द्वारा रचित उसको भी विशेष शुद्धिपूर्वक गणधराचाय महाराज ने टीका करके विमल भाषा टीका के नाम से इस ग्रन्थ मे प्रकाशित करवा दिया है। पद्मावती देवी के अनेको यत्र मत्र इसमे प्रकाशित किये गये है जो अनेक प्रकार के रोग शोक सकट निवारण मे लोगो को लाभ प्रदान कर सकेंगे। ग्रन्थ मे प्रकाशनार्थ, प्रस्तावना आदरणीय प्रोफेसर अक्षयकुमारजी जैन इन्दौर वालो ने लिखने की कृपा की है। इसके लिए हम ग्रन्थमाला समिति की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद देते है और आशा करते है कि भविष्य मे भी आपका सहयोग तथा मार्ग-दर्शन इस ग्रन्थमाला समिति को सदैव प्राप्त होता रहेगा। ग्रन्थ प्रकाशन मे, प्रकाशन खर्चों के भुगतान हेतु आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है। ग्रन्थमाला समिति के पास स्थायी आर्थिक जमा राशि नही है फिर भी इस ग्रथमाला से अब तक पन्द्रह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है जो सभी समाज के गुरुभक्त दातारो से प्राप्त आर्थिक सहयोग के आधार पर हम करा सके है। ___ ग्रन्थमाला समिति को समय-समय पर प्रकाशन खर्चों मे सहयोग हेतु जिन-जिन दातारो ने हमे सहयोग किया है हम सभी के आभारी है और आशा करते हैं कि भविष्य मे भी आप सभी का सहयोग हमे प्राप्त होता रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ मे भी लगभग एक लाख रुपया प्रकाशन कार्य में खर्च हा है जो आप सभी से प्राप्त सहयोग के आधार पर हम करा सकेगे। जैन समाज बडौत ने इस ग्रन्थ मे प्रकाशन खर्चों की पूर्ति हेतु विशेष सहयोग किया है । श्रीमान् परम गुरुभक्त सेठ प्रेमचन्दजी जैन (मित्तल) का भी इस ग्रन्थ का प्रकाशन कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण कराने मे विशेष सहयोग रहा है। हम सभी को ग्रन्थमाला समिति, की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद देते है । __ ग्रन्थमाला समिति के प्रकाशन कार्यो मे सभी सहयोगी कार्यकर्त्तानो का बहुत-बहुत आभारी हूं कि आप सभी ने समय पर कार्य पूरा करवाने मे मुझे सहयोग प्रदान किया है। श्री प्रदीप कुमार
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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