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________________ लघुविद्यानुवाद ४६ गयाझाज्वउ मोरण । रणंयारिइया मोण। गंद्धासि मोरण । रगताहरन मोरण । विधि -चौथ, चौदस या शनिश्चर को धूल की चुटकी लेकर मन्त्र पढता हुआ तीन बार फूक मारकर जिस पर डाले सो वश मे होय। यह मन्त्र नवकार मन्त्र के ३५ अक्षर उल्टे लिखने से बनता है। जब और जितना समय मिले उतनी देर तक इस मन्त्र का जाप करे। नित्य सात दिन तथा ग्यारह दिन तथा इक्कीस दिन तक जपे, अगर हो सके तो इसका सवा लक्ष जाप करे। इससे अधिक जितने हो सके करे, तो तुरन्त ही बन्दी छट जावे। कैद मे हो वह तो यह मन्त्र जपे, और इसके हितपरिवारी अदालत मे मुकदमा की अपील वगैरह करे तो तुरन्त छूटे। मछली बचावन बन्दीखाना निवारण मंत्र ॐ गमो अरहंतारणं ॐ रामो लोए सनसाहरणं । हुलु हुलु कुलु कुलु चुलु चुलु मुलु मुलु स्वाहा ॥ विधि :-यह मन्त्र दो कार्यो की सिद्धि मे काम आता है - १-यह मन्त्र ककरी के ऊपर पढकर मुह से फूक देता जावे । इस प्रकार इक्कीस बार पढ़कर फिर उस कट्टर को किसी हिकमत से जाल पर मारे, जो मछली पकड रहा हो तो उसके जाल में एक भी मछली न फसे, सब बच । २-यह मन्त्र जितनी देर तक जप सके प्रतिदिन जपे, सवा लक्ष सख्या पूर्ण होने पर बल्कि उससे पहले ही बन्दी, बन्दीखाने से छूट। अगर मुमकिन हो सके तो मन्त्र जपते समय धप जलाकर आगे रखे, मन्त्र का फल तुरन्त हो, बन्दीखाने से तुरन्त छूटे। अग्नि निवारण मन्त्र ॐ अर्ह असि आ उ सा णमो अरहताणं नमः । विधि :-एक लोटे मे पवित्र शुद्ध जल लेकर उसमे से हाथ की चुल्लू मे जल लेकर यह मन्त्र इक्कोस बार पढे । जहाँ अग्नि लग गई हो उस स्थान पर इस जल का छीटा दे। पहले जो चल्ल मे जल है जिस पर ईक्कीस बार मन्त्र पढा है, उसकी लकीर खीचे, उस लकीर से आगे अग्नि नही बढे और अग्नि शान्त हो जाये। इस मन्त्र को १०८ बार अपने मन मे जपे तो एक उपवास का फल प्राप्त हो।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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