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________________ ७८] से भैरव पद्मावती कल्प यसाधकाभिलषितं तत्त्स्मै वस्तु सा ददात्येव । झोभं प्रयान्ति रण्डाः सर्वा मपि भुवनवर्तिन्यः ।। २६ ।। भा० टी०-वह साधककी इच्छा की हुई सभी वस्तुएं देती है, उससे लोकमें रहनेवाली सभी विधवाएं क्षोभको प्राप्त होती हैं। यंत्र संख्या ३८ स्त्री वशीकरण ध्यान कि तत्त्वं मन्मथबीजस्य तलोपरि विचिन्तयेत् । पार्श्वयोरेबल पिण्डं भ्रमन्तमरुणप्रभम् ।। २७ ।। भा० टी०-क्लीके ऊपर ह्रींका ध्यान करके उसके दोनों ओर 'घूमते हुये अरुण प्रभावाने 'ब्लें' का ध्यान करे । योनौ क्षोभं मूर्धनं मोहनि पातन ललाटस्थम् । ' लोचनयुग्मे द्रावं ध्यानेन करोतु वनितानाम् ।। २८ ॥ भा० टी०-यह ध्यान, खियोंको योनिमें करनेसे क्षोभ, सिरमें करनेसे मोहन, मस्तकमें करनेसे पातन (विसर होकर गिरना), और दोनों नेत्रों में करनेसे द्राषण होता है।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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