SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टै भैरव पद्मावती क्ल्प [६१: ह्रींकारमध्ये प्रविलिख्य नाम षट्कोणचक्र बहिराभिलेख्य । कोणेषु तत्त्व त्रिषु चोर्ध्वकोणद्वये पुनयूंमधरों लिखेच्च ।। ९ ।। भा० टो०-होंक मध्यमें स्त्रोके नामको लिखकर उसके वाहिर षटकोण चक्र बनावे, उसके ऊपरके त्रिभुजके तीनों कोणोंमें ह्रीं, ऊपरके दोनों कोणोंमें यूं और नीचे ॐ को लिखे। पाशाङ्कशौ कोणशिखान्तरस्थौ मन्त्रावृतं वायुपुरच बाझे। आकृष्टिमिष्टामदाजनानां करोति यन्त्र खदिराग्नितप्त ॥ १० ॥ भा० टी०-उनके प्रत्येक कोणके ऊपर आं और क्रों को ' लिसे। फिर इन सबको निम्नलिखित मन्त्रसे वेष्टित करके उसके चाहिर वायुमण्डल बनावे। यह यन्त्र खैरकी अग्निसे तपाया जानेसे इच्छित स्त्रियोंका आकर्षण करता है। मन्त्रोंद्धार ॐ ह्रीं हरक्की हुक्की आं क्रों य्यू नित्य लिन्ने मवे मदना-- तुरे अमुकां मम वश्याकृष्टिं कुरु२ संवौषट् ।' लिखित्वा ताम्रपत्रे वा श्मशानोद्भगखर्परे। तदङ्गमलधत्तूरविषाङ्गारप्रलेपितम् ॥ ११ ॥ इस यन्त्रको ताम्रपत्र या स्मशानके खप्परपर बीके अंगके कूचों मल, धतूरे, शृङ्गोविष और अंगारसे लिखना चाहिये।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy