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________________ ५८] ॐ भैरव पद्मावती काप क्रोकारैः परिवेष्ट मन्त्रबलय दद्यात्पुरं चानलं । तद्वाह्येऽनलभूपुरं त्रिदिवसे दीपाग्निनाकर्षणम् ।।४।। पत्रे खोरूपमालिख्यमूर्द्धपादमधः शिरः । ब्रह्मादिराजिकाधूमभानुदुग्धेन लेपयेत् ।। ५ ।। एक ताम्रपत्रपर अपनी इच्छित स्त्रोके रूपको ऊपरको पैरे और नीचेको शिर करके बनावे । उसके हृदयकम में 'ॐ हौं' शरीरके सब जोड़ोमें 'क्रों' दोनों कुचोंमें 'ह्रीं' और योनिदेशमें 'य्यू' लिखकर उनको चारों ओर 'क्रों' से घेरकर मन्त्रका वलय, अग्निमण्डल, वायुमण्डल और पृथिवीमण्ड र बनावे । इस यन्त्रको धतूरे, सफेद सों, गेहू और माके दूधसे ताम्रपत्रपर लिखकर तीन दिन तक दीपककी अग्निपर तपानेसे इच्छित स्त्रीका आरर्षण होता है। मन्त्रोद्धार___ ॐ नमो भगवति कृष्णमातहिनि शिलाबल्झलकुसुमरूपधारिणि किरातशवरीसर्वजनमोहिनि सर्वजनवशकरि हो हो हं ह्रौं हः अमुकां आकर्षय २ समवश्याकृष्टिं कुरु कुरु सवौषट् ।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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